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Holika Dahan की क्या है पौराणिक कथा? सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव स्वामी गुरुवानंद से जानिए

होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन की पौराणिक कथा के बारे में सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव स्वामी गुरुवानंद ने बताया। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Holika Dahan की क्या है पौराणिक कथा? सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव स्वामी गुरुवानंद से जानिए

नई दिल्ली: होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार हर साल होली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग होलिका दहन की पवित्र अग्नि की पूजा करते हैं और विभिन्न प्रकार के पूजा अनुष्ठान करते हैं। होली के दौरान आमतौर पर होलिका दहन की कथा सुनी जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं रंगों वाली होली क्यों खेली जाती है? 

सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव स्वामी गुरुवानंद से जानने की कोशिश करते हैं कि होलिका दहन का क्या महत्व है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है।

क्या है पौराणिक कथा?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) नाम का असुर रहा करता था जो भगवान विष्णु से नफरत करता था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और भगवान की पूजा में लीन रहता है। बालक प्रह्लाद की भक्ति देखकर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने का फैसला लिया। हिरण्यकश्यप ने हर वो कोशिश की जिससे वह प्रह्लाद को मार सके लेकिन प्रह्लाद हर बार बच जाता था। 

हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद लेने की सोची। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हिरण्यकश्यप ने होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग की लपटों में बैठने के लिए कहा और होलिका ने बिल्कुल ऐसा ही किया। होलिका नन्हे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग की चिता पर बैठ गई। लेकिन, भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई हो गई और प्रह्लाद बच गया। इसके बाद से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाने लगा और हर साल होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

पूरे देश में होली को लेकर अलग अलग जगहों पर काफी उत्साह है, सभी बड़ी धूम धाम से होली का त्योहार मना रहे हैं। 

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