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मोरों के कारण खराब हो रही है कलिम्पोंग का ये प्रसिद्ध फसल

धन बहादुर तमांग दोपहर का भोजन कर रहा था, तभी उसे मोरों की आवाज सुनाई दी, जिसके बाद वह खाना छोड़कर गुलेल और कुछ कंकड़-पत्थर लेकर पहाड़ियों में अपने खेतों की ओर तुरंत दौड़ा, ताकि वह अपनी ‘डल्ले खुर्सानी’ की फसल को इन पक्षियों से बचा सके। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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मोरों के कारण खराब हो रही है कलिम्पोंग का ये प्रसिद्ध फसल

कलिम्पोंग: धन बहादुर तमांग दोपहर का भोजन कर रहा था, तभी उसे मोरों की आवाज सुनाई दी, जिसके बाद वह खाना छोड़कर गुलेल और कुछ कंकड़-पत्थर लेकर पहाड़ियों में अपने खेतों की ओर तुरंत दौड़ा, ताकि वह अपनी ‘डल्ले खुर्सानी’ की फसल को इन पक्षियों से बचा सके।

तमांग कलिम्पोंग जिले के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले उन सैकड़ों किसानों में से एक हैं, जिन्हें मोर से अपनी फसलों की रक्षा भी करनी है, लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि वे इस दौरान राष्ट्रीय पक्षी को कोई नुकसान न पहुंचा दें, जिसे कानून के तहत सुरक्षा प्राप्त है।

‘डल्ले खुर्सानी’ पहाड़ियों में उगाई जाने वाली मिर्च की एक किस्म है और यह सबसे तीखी मिर्च में से एक मानी जाती है, लेकिन स्थानीय लोगों को डर है कि मोरों के कारण इस फसल पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। कई रसोइयों के पंसदीदा मसाले ‘डल्ले खुर्सानी’ को दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और सिक्किम की पहाड़ियों के लिए दो साल पहले भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिला था।

‘डल्ले खुर्सानी’ 500 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से बिक जाती है और इसलिए यह किसानों की पसंदीदा फसल है।

तमांग ने अपने खेत से मोर पक्षियों को हटाने के बाद कहा, ‘‘जब कोई मोर किसी खेत में आता है, तो यह काफी नुकसान पहुंचा देता है। वह खाता कम है, लेकिन फसलों को नष्ट बहुत करता है।’’

रंगुल गांव में तमांग की पड़ोसी और किसान माया योनजोन ने कहा, ‘‘मोरों का खौफ इतना है कि कई लोगों ने इस पक्षी की पसंदीदा फसलों दलहन और ‘डल्ले खुर्सानी’ की खेती करना ही बंद कर दिया है।’’

योनजोन ने कहा, ‘‘हम में से कई लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। हम मासूम जानवरों एवं पक्षियों को नहीं मारते। यह राष्ट्रीय पक्षी है और इसे मारना गैर कानूनी है।’’

इसके अलावा अंधविश्वास के चलते भी लोग ऐसा करने से बचते हैं।

योनजोन ने कहा, ‘‘हमारे इलाके में एक व्यक्ति ने एक बार एक मोर को मार डाला था। उसके बाद, वह लकवाग्रस्त हो गया और दयनीय जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो गया। हमारा मानना है कि मोर को मारना अशुभ होता है।’’

कलिम्पोंग के संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) चित्रक भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘इन हिस्सों में लोग आमतौर पर मोर को मारते नहीं हैं। फिर भी, हम जागरूकता अभियान चलाते हैं और लोगों से उन्हें नहीं मारने का आग्रह करते हैं।’’

वन अधिकारी ने कहा कि विभाग हाथियों, तेंदुओं और सांड जैसे बड़े जानवरों से होने वाले नुकसान की भरपाई करता है, लेकिन पक्षियों की वजह से हुए नुकसान की भरपाई का प्रावधान नहीं है।

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