संसदीय समिति में न्यायपालिका पर बोझ कम करने की दिशा में सुझाये ये नये उपाय, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जन विश्वास विधेयक में मामूली अपराधों से निपटने के लिए न्यायिक तंत्र जैसे उपायों को शामिल करने से न्यायपालिका पर बोझ कम करने और अदालतों को लंबित मामलों का निपटारा करने में काफी मदद मिलेगी। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जन विश्वास विधेयक में मामूली अपराधों से निपटने के लिए न्यायिक तंत्र जैसे उपायों को शामिल करने से न्यायपालिका पर बोझ कम करने और अदालतों को लंबित मामलों का निपटारा करने में काफी मदद मिलेगी।
जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक 2022 को 22 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था, जिसमें 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन करके मामूली अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रावधान है। इसे जांच के लिए संसद की 31 सदस्यीय संयुक्त समिति के पास भेजा गया था।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार यह रिपोर्ट 20 मार्च को पेश की गई थी।
इसमें कहा गया है कि ‘‘न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन’’ की भावना का पालन करते हुए भारत को उन पुराने कानूनों से छुटकारा पाने की जरूरत है जो देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।
विधेयक में बड़ी संख्या में मामूली प्रकृति के अपराधों की पहचान करने और उन्हें मौद्रिक दंड के साथ अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रयास किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी प्रक्रियात्मक खामियों और मामूली चूक के लिए आपराधिकता के प्रावधान न्यायपालिका को परेशान कर सकते हैं और बड़े अपराधों के फैसले को ठंडे बस्ते में डाल सकते हैं।
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रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘कुछ प्रस्तावित संशोधनों में छोटे अपराधों से निपटने के लिए उपयुक्त न्यायिक तंत्र पेश किए गए हैं जो व्यवहार्यता आधारित हैं। इससे न्यायपालिका पर बोझ कम करने, अदालतों को लंबित मामलों का निपटारा करने और कुशल न्याय व्यवस्था में मदद मिलेगी।’’
विधेयक में दंड के बजाय जुर्माना (अर्थदंड लगाना) पर अधिक जोर दिया गया है और मामूली अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की संख्या में काफी विस्तार किया गया है। समिति ने कहा कि यह एक ऐसा कदम है जो व्यापार और जीवन जीने की सुगमता को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘मामूली अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से निश्चित रूप से न्यायपालिका और जेलों पर बोझ कम होगा और साथ ही साथ व्यापार करने और जीवन जीने की सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।’’
इसमें यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित संशोधनों से निवेश निर्णयों में तेजी आएगी क्योंकि इससे प्रक्रियाएं सुचारू बनेंगी और अधिक निवेश आकर्षित किया जा सकेगा।
इसमें कहा गया है, ‘‘विधेयक में अनुपालन बोझ को कम करने का प्रयास किया गया है ताकि कारोबारी प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि विधेयक द्वारा बड़ी संख्या में किए जाने वाले सुधारों से छोटे और मध्यम उद्यमों से लेकर बड़े निगमों, निवेशकों तथा स्टार्ट-अप, श्रमिकों, उद्यमियों तक सभी प्रकार के व्यावसायिक उद्यमों पर असर पड़ेगा।
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कुल मिलाकर विधेयक का उद्देश्य विभिन्न छोटे विवादों के त्वरित और प्रभावी समाधान के साथ व्यापार के अवसर प्रदान करना और विस्तार करना है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि सरकार पेनाल्टी एकत्र करने में सक्षम है।
छोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अलावा विधेयक में अपराध की गंभीरता के आधार पर मौद्रिक दंड को युक्तिसंगत बनाने की परिकल्पना की गई है, जिससे विश्वास आधारित शासन को मजबूती मिलेगी।
जिन अधिनियमों में संशोधन किया जा रहा है उनमें औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940; सार्वजनिक ऋण अधिनियम, 1944; फार्मेसी अधिनियम, 1948; सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952; कॉपीराइट अधिनियम, 1957; पेटेंट अधिनियम, 1970; पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 शामिल हैं।
समिति की अध्यक्षता लोकसभा से भाजपा सदस्य पीपी चौधरी ने की। अन्य सदस्यों में संजय जायसवाल, राजेंद्र अग्रवाल, पूनम प्रमोद महाजन, गौरव गोगोई, ए राजा और सौगत रे शामिल हैं।