Lockdown 2: लाकडाउन का स्पष्ट प्रभाव दिख रहा है प्रकृति पर

डीएन ब्यूरो

वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उचित समय पर लिए गये लाकडाउन का प्रभाव जहाँ महामारी को नियंत्रण करने में पड़ रहा है वही प्रकृति को भी अपने को साफ सुथरा करने का समय मिल गया है।

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देवरिया: वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उचित समय पर लिए गये लाकडाउन का प्रभाव जहाँ महामारी को नियंत्रण करने में पड़ रहा है वही प्रकृति को भी अपने को साफ सुथरा करने का समय मिल गया है।

लॉकडाउन के चलते दुनिया में करोड़ों लोग घरों में रह रहे हैं। इससे भले ही आम लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन प्रकृति मुस्कुरा रही है। लोग स्वच्छ नीला आसमान, दुर्लभ पशु-पक्षी और शुद्ध हवा का अहसास कर रहे हैं। लॉकडाउन में लोग घरों में रह रहे हैं। सड़कों से गाड़ियां गायब हैं। कारखाने भी बंद हैं। इससे हवा स्वच्छ हो गई है। केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड ने भी कहा कि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश में वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। आकंड़ों के मुताबिक, भारतीय शहरों में 16 से 24 मार्च के बीच औसत 115 का एक्यूआई था। 21 दिन के लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही हवा की गुणवत्ता में सुधार दिखाई देने लगा और यह 75 से भी नीचे पहुंच गया था। प्रसिद्ध पर्यावरणविद कृषि विज्ञानी डॉ0 यशवंत सिंह का मानना है कि प्रकृति अपने को साफ सुथरा रखने को इन्तजाम खुद करती है। चाहे बारिश, गर्मी, ठंड या फिर कोई आपदा ही क्यों हो। पर्यावरणविद इसके लिये बार बार आगाह कर चुके है कि प्रकृति के साथ खेलोगों तो विनाश के अलावा कुछ हाथ नही लगेगा। प्रकृति खुद को साफ करने का ऐसा ही नजारा उत्तर प्रदेश में देवरिया के रूद्रपुर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि बहुत हद तक असंतुलन ठीक करने का काम प्रकृति भी स्वयं करती रहती है, यह कटु सत्य है कि सबसे समझदार प्राणी मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये सबसे खराब रोल में दिख रहा है। लॉकडाउन के चलते जिला मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर रूद्रपुर क्षेत्र के राप्ती और गोर्रा नदी के संगम तट बेलुआर घाट पर पानी साफ सुथरा दिखायी देने लगा है। इस क्षेत्र में कोरोना वायरस संकट के बीच कछार क्षेत्र का प्राकृतिक माहौल तेजी से बदलता दिखाई पड़ रहा है। इस क्षेत्र में देश के और हिस्सों के साथ प्रदूषण कम होने से नदियां साफ,स्वच्छ होने के साथ निर्मल हो रही हैं। यहां दोनों नदियों की धारा अब साफ साफ लोगों को दिखाई पड़ रही है।

स्थानीय लोगों का का कहना है कि यहां नदियों के निर्मल होने के बाद दुर्लभ डालफिन मछली भी सुबह शाम नदी में जल क्रिड़ा करती दिख जा रही हैं। वर्षो से डालफिन जिसे स्थानीय लोग सूंस के नाम से जानते हैं, कभी देखी जाती थी। वो अब प्रायः दिख रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कोरोना संकट के पहले यहां के संगम स्थल पर दोनों नदियों का जल मटमैला रहता था। अब यहां दोनों नदियों के जल की धार अलग अलग साफ दृष्टिगोचर हो रही हैं।लोग अब लोग इस मनोरम छटा को निहार रहे हैं। बेलुआर घाट के तट पर स्थित श्री दत्तात्रेय धाम के संस्थापक स्वामी परमानंद गिरि श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा 13 मढ़ई का कहना है कि कोरोना महामारी पूरे जगत के साथ भारत के लिए बहुत बड़ा संकट बनता जा रहा था , जिसे अपने देश का शीर्ष नेतृत्व समय से निर्णय लेकर भयावहता को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है।

स्थानीय निवासी अमित कुंअर , छोटू ,तेजप्रताप का कहना है कि यह संकट प्रकृति के लिए वरदान भी साबित हो रहा है। कोरोना संकट के पहले यहां के नदियों में प्रदूषण के कारण पानी मटमैला हुआ करता था। अब यहां प्रकृति अपनी संरचना करती दिख रही है। नदी का पानी काफी स्वच्छ होता जा रहा है और इसी का परिणाम है कि यहां रहने वाली दुलर्भ प्रजाति की डालफिन ने संगम तट पर अपना अठखेलिया कर रही हैं। लोग उन्हें देख कर आनन्दित हो रहे हैं।

रूद्रपुर निवासी एम पी विशारद का कहना है कि कोरोना का संकट पूरी दुनिया के साथ भारत में भी विकराल रूप धारण करते दिख रहा है और संकट से उबरने का एक मात्र उपाय है कि लोग अपने घरों से निकले तथा बहुत जरूरी होने पर मास्क या गमछा का प्रयोग करते हुए ही आवश्यक होने पर ही, समाजिक दूरी का पालन कर इस महामारी से लड़ा जा सकता है। उनका मानना है कि कोरोना के इस संकट ने प्रकृति को अपनी कायाकल्प करने का मौका दे दिया है और इसी का परिणाम है कि आज प्रकृति अपने पुराने रौ में वापस रही है।

रूद्रपुर क्षेत्र के डढ़िया गांव निवासी 94 वर्षीय पंडित विश्वनाथ दुबे का कहना है कि उनके बाल्यकाल में नदी का जल इतना स्वच्छ और निर्मल हुआ करता था कि इस जल को ही लोग गांवों में पीने के पानी के रूप में प्रयोग करते थे। धीरे धीरे आधुनिक होते गये समाज में लोगों ने प्रकृति के साथ काफी खिलवाड़ करते हुए इसको काफी नुक़सान पहुँचाया। उन्होंंने कहा कि कोरोना के इस महासंकट के बीच प्रकृति अपने पुरातन रूप में आती दिख रही है। जिससे सीख लेने, भविष्य में भी अपने आचरण व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन बनाये रखने की जरूरत है।(वार्ता)










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