कूनो राष्ट्रीय उद्यान में मार्च से अब तक सात चीतों की मौत, वन्यजीव विशेषज्ञों ने उठाये सवाल, जानिये क्या बोला मदद पर

डीएन ब्यूरो

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इस साल मार्च से अब तक सात चीतों की मौत के मद्देनजर वन्यजीव विशेषज्ञों ने अफ्रीकी चीतों को संभालने के तरीके पर सवाल उठाया है और इन जानवरों की देखभाल में अधिक अनुभवी पशु चिकित्सकों की मदद लेने का सुझाव दिया है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अब तक सात चीतों की मौत
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अब तक सात चीतों की मौत


भोपाल: मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इस साल मार्च से अब तक सात चीतों की मौत के मद्देनजर वन्यजीव विशेषज्ञों ने अफ्रीकी चीतों को संभालने के तरीके पर सवाल उठाया है और इन जानवरों की देखभाल में अधिक अनुभवी पशु चिकित्सकों की मदद लेने का सुझाव दिया है।

ताजा घटना में मंगलवार को केएनपी में नर चीता तेजस की मौत हो गई। एक वन अधिकारी के अनुसार, शव परीक्षण रिपोर्ट से पता चला कि वह ‘‘आंतरिक रूप से कमजोर’’ था और मादा चीता के साथ हिंसक लड़ाई के बाद ‘‘सदमे’’ से उबर नहीं पाया। तेजस नामक इस नर चीते को इसी साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से श्योपुर जिले के केएनपी में लाया गया था।

इसके साथ ही मार्च से अब तक केएनपी में नामीबियाई चीता ‘ ज्वाला’ से पैदा हुए तीन शावकों सहित सात चीतों की मौत यहां हो चुकी है। इससे पिछले सात सितंबर में बहुत जोर शोर से चीतों को देश में फिर से बसाने की योजना के तहत शुरु किए गए ‘प्रोजेक्ट चीता’ को झटका लगा है।

देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के पूर्व डीन और वरिष्ठ प्रोफेसर वाई वी झाला ने पीटीआई भाषा को बताया, “हालांकि इस कार्यक्रम में चीता की मौत की आशंका थी, लेकिन अधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये मौतें सुरक्षित बाड़े में हुई। सुरक्षित बाड़े से निकलने के बाद चीतों के मरने की आशंका थी, उसके भीतर नहीं।’’

झाला के अनुसार, उन्हें बताया गया कि चीता तेजस की मौत आपसी लड़ाई के कारण हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘मादा चीता द्वारा नर पर हमला करना और उसे मार डालना एक ऐसी घटना है, जिसकी चीता के बाड़े में कहीं से भी खबर नहीं है।’’

झाला ने कहा इससे अधिक, ‘‘मादा चीता निगरानी में बड़ी हुई और शिकार करना सीख रही है, इसलिए यह आश्चर्य की बात है कि उसने हमला किया और जंगली नर चीते को मारने में कामयाब रही।’’

उन्होंने कहा, ‘‘तेंदुए से लड़ाई, जंगली शिकार और मानवीय कारणों के चलते, मुक्त रेंज में चीतों के जान गंवाने की आशंका थी, लेकिन केएनपी फ्री रेंज में ऐसी कोई भी मौत नहीं हुई। यह प्रबंधन के लिए सराहनीय है।’’

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झाला ने कहा कि इसी तरह, ‘‘बाड़े में निगरानी में रहने के दौरान तीन शावकों की मौत भी आश्चर्यजनक है और उनकी देखभाल पर सवालिया निशान लगाती है। यदि शावक कुपोषित थे, तो उन्हें स्वस्थ बनाने के लिए पूरक आहार दिया जाना चाहिए था। ’’

उन्होंने चीतों की मौत को, इन प्राणियों को देश में बसाने के कार्यक्रम के लिए एक ‘‘बड़ा नुकसान’’ और एक महंगा अनुभव करार दिया जिससे सबक लेना जरूरी है। विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘कुनो में चीतों की मौत, इस परियोजना की सफलता के लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। चीतों की रिहाई के लिए अन्य स्थलों में तैयारी की तत्काल आवश्यकता है।’’

झाला ने कहा कि भारत में चीतों को पुन: बसाने की परियोजना को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उचित बजट आवंटन के साथ कुनो जैसी कम से कम तीन से पांच स्थलों की आवश्यकता है।

जबलपुर स्थित नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत्त डीन ने भी चार महीने की अवधि में सात चीतों की मौत पर चिंता व्यक्त की।

नाम जाहिर न करने के अनुरोध पर उन्होंने कहा कि चीतों को फिर से बसाने का कार्यक्रम अच्छा है और ऐसे प्रयासों में कुछ मौतों की भी आशंका है।

उन्होंने सुझाव दिया कि इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की सफलता के लिए वरिष्ठ अनुभवी पशु चिकित्सकों को चीतों का प्रबंधन करने वाली टीम में शामिल किया जाए।

विश्वविद्यालय के एक अन्य सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि चीता या किसी अन्य महाद्वीप से स्थानांतरित किए गए किसी अन्य जानवर को अनुकूलन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह निवास स्थान हो, भोजन हो या मौसम की स्थिति हो।

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उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी बात यह है कि किसी भी जानवर को पकड़ने के लिए उसे बेहोश करने के उद्देश्य से एक या दो बार या उससे अधिक बार ट्रेंकुलाइजर दिया जाता है। ऐसे में वह हार्मोन में बदलाव के कारण अंदर से कमजोर हो जाता है और उनके एंजाइम भी प्रतिकूल व्यवहार करते हैं।’’

उन्होंने दावा किया कि हिरण या इस जैसे अन्य पकड़े गए जंगली जानवरों की जीवित रहने की दर केवल 20-30 प्रतिशत है।

विशेषज्ञ ने कहा कि तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारक है आपसी लड़ाई या किसी अन्य कारण से होने वाली किसी बीमारी या चोट की स्थिति। ‘‘समय पर इसका पता चल जाने से जानवर के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।’’

उन्होंने चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के बेहतर प्रबंधन के लिए चीतों को संभालने वाली टीम में अधिक अनुभवी पशु चिकित्सकों को शामिल करने का भी सुझाव दिया।

भोपाल के वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने भी मांग की कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बेहतर परिणामों के लिए तुरंत ही प्रशिक्षित वन्यजीव अधिकारियों को तैनात करके चीता प्रबंधन टीम में बदलाव करें।

कुल 24 चीतों में से केएनपी में सात चीतों की मौत के बाद चीतों की कुल संख्या अब घटकर 17 हो गई है। इनमें से 20 चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए थे और चार शावक केएनपी में पैदा हुए थे।

धरती से सबसे तेज दौड़ने वाले जानवर चीते को 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।










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