शोध रिपोर्ट: भारत में जलवायु परिवर्तन को लेकर पढ़ें ये खास रिपोर्ट, जानिये ‘क्लाइमेट ट्रांजिशन’ का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर

डीएन ब्यूरो

भारत में जलवायु परिवर्तन कम करने के लिए कार्बन उत्सर्जन घटाने वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने (क्लाइमेट ट्रांजिशन) की अनुमानित लागत और फायदे विभिन्न क्षेत्रों में बहुत असमान रूप से वितरित हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है जिसमें इस असमानता की भरपाई के लिए तत्काल नीतिगत साधनों की वकालत की गयी है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

जर्मनी स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन ग्लोबल कॉमन्स एंड क्लाइमेट चेंज
जर्मनी स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन ग्लोबल कॉमन्स एंड क्लाइमेट चेंज


नयी दिल्ली: भारत में जलवायु परिवर्तन कम करने के लिए कार्बन उत्सर्जन घटाने वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने (क्लाइमेट ट्रांजिशन) की अनुमानित लागत और फायदे विभिन्न क्षेत्रों में बहुत असमान रूप से वितरित हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है जिसमें इस असमानता की भरपाई के लिए तत्काल नीतिगत साधनों की वकालत की गयी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार शोधकर्ताओं ने इस बात का संज्ञान लिया कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि, कोयला आधारित बिजली उत्पादन में मामूली बदलाव करके और उत्सर्जन व्यापार के रूप में कार्बन मूल्य निर्धारण की योजना के लिए बड़े लक्ष्य के साथ ‘क्लाइमेट ट्रांजिशन’ की दिशा में पहला कदम उठा रहा है।

जर्मनी स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन ग्लोबल कॉमन्स एंड क्लाइमेट चेंज (एमसीसी) के अनुसंधानकर्ता जोस ओर्डोनेज ने कहा, ‘‘29 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेश वाले इस बड़े देश में पहले ही क्षेत्रीय संपदा संबंधी असमानताएं हैं।’’

फिलहाल स्पेन स्थित यूरोपीय संघ आयोग के ज्वाइंट रिसर्च सेंटर में कार्यरत ओर्डोनेज ने कहा, ‘‘हम अलग-अलग भौगोलिक इकाइयों के लिए एक महत्वाकांक्षी ‘क्लाइमेट ट्रांजिशन’ के परिदृश्य का निर्धारण करते हैं, और आय वितरण, रोजगार तथा औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता पर संयुक्त प्रभाव की जांच करते हैं।’’

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इससे केंद्र सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आता है कि क्षतिपूर्ति के उपायों के बिना गरीब और धनवान क्षेत्रों के बीच का अंतराल बढ़ने का खतरा है।

 अध्ययन में नीतिगत उपायों के प्रत्यक्ष वितरण प्रभावों का खाका बनाने के लिए अनुभव आधारित आंकड़ों के साथ इनपुट-आउटपुट मॉडल का उपयोग किया गया।

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि जलवायु संरक्षण की दिशा में एक व्यापक प्रयास होगा, जिसमें कोयले का उपयोग चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना, सौर और पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन का व्यापक विस्तार, निजी घरों और कंपनियों के लिए 40 डॉलर प्रति टन का राष्ट्रीय कार्बन मूल्य और ऊर्जा सब्सिडी का उन्मूलन शामिल हैं।

अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार ‘बहुत नुकसानदेह’ से ‘बहुत अनुकूल’ तक गुणात्मक पैमाने पर अलग-अलग क्षेत्रों पर इस पैकेज का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है।

अध्ययन में सामने आया कि कोयले के खनन में व्यापक रूप से शामिल पूर्वी भारत के पहले से अभावग्रस्त राज्यों में नकारात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं जिनमें झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार हैं।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में नौकरियां चली जाएंगी, गरीब परिवारों पर बोझ पड़ेगा और अधिक ऊर्जा खपत वाले उद्योग दबाव में आ जाएंगे। वहीं, दूसरी तरफ अपेक्षाकृत संपन्न राज्यों को एक महत्वाकांक्षी जलवायु नीति का बड़ा लाभ मिलेगा।










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