विधायक अयोग्यता विवाद : महाराष्ट्र विस अध्यक्ष अदालत के आदेशों को विफल नहीं कर सकते : न्यायालय

डीएन ब्यूरो

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके वफादार शिवसेना विधायकों के खिलाफ अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर निर्णय करने में हो रही देरी पर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि (अयोग्य ठहराये जाने की) कार्यवाही ‘पहेली’ नहीं बन सकती है और और वह शीर्ष अदालत के आदेश को विफल नहीं कर सकते हैं । पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय


नयी दिल्ली:  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके वफादार शिवसेना विधायकों के खिलाफ अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर निर्णय करने में हो रही देरी पर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि (अयोग्य ठहराये जाने की) कार्यवाही ‘पहेली’ नहीं बन सकती है और और वह शीर्ष अदालत के आदेश को विफल नहीं कर सकते हैं ।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर की पैरवी करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इस मुद्दे पर कब तक निर्णय किया जाएगा इसके बारे में वह उसे मंगलवार तक अवगत कराए।

पीठ ने यह भी कहा कि यदि वह संतुष्ट नहीं हुई तो वह ‘बाध्यकारी आदेश’ सुनाएगी।

पीठ ने कहा, ‘‘किसी को तो (विधानसभा) अध्यक्ष को यह सलाह देनी होगी । वह उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अनेदखी नहीं कर सकते हैं । वह किस तरह की समय सीमा को बता रहे हैं ।....... यह (अयोग्यता संबंधी कार्रवाई) एक संक्षिप्त प्रक्रिया है । पिछली बार, हमें लगा था कि सद्बबुद्धि आएगी और हमने उनसे एक समयबद्ध -सारणी निर्धारित करने के लिए कहा था।’’

अदालत ने कहा कि समय-सारिणी निर्धारित करने के पीछे विचार अयोग्यता कार्यवाही पर सुनवाई में ‘‘अनिश्चित काल के लिए विलंब’’ करना नहीं था।

अप्रसन्न दिख रहे प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला अगले विधानसभा चुनाव से पहले लेना होगा, नहीं तो पूरी प्रक्रिया निरर्थक हो जाएगी। प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव संभवतः सितंबर-अक्टूबर 2024 के आसपास होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘निर्णय अगले चुनाव से काफी पहले लिया जाना चाहिए और यह पूरी प्रक्रिया को निष्फल बनाने के लिए ऐसे ही नहीं चल सकता।’’

अदालत ने अपने पहले के आदेश का पालन न होने पर चिंता जताते हुये कहा कि जून के बाद से इस मामले में कोई भी प्रगति नहीं हुई है तथा सरकार के शीर्ष कानून अधिकारी को ‘स्पीकर को सलाह’ देने के लिए कहा । पीठ ने कहा, ‘‘उन्हें सहायता की आवश्यकता है, जो स्वाभाविक है’।

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पीठ ने कहा कि अध्यक्ष की ओर से ऐसी धारण बनायी जानी चाहिए कि वह मामले को गंभीरता से ले रहे हैं।

अदालत ने कहा, ‘‘जून के बाद से, मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस मामले में क्या हुआ? कुछ नहीं! यह पहेली नहीं बन सकता । इस मामले में (स्पीकर के समक्ष) सुनवाई होनी चाहिए ।’’

नोटिस जारी करने और याचिकाओं पर फैसले के लिए समयसीमा मांगने के अदालत के पहले के आदेशों का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत विधानसभा अध्यक्ष की ओर से उसके निर्देशों का पालन नहीं किए जाने को लेकर चिंतित है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं हमारी अदालत की गरिमा बनाए रखने को लेकर चिंतित हूं।’’

शीर्ष अदालत शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट और राकांपा के शरद पवार खेमे द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कुछ विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था ।

ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कार्यवाही में देरी का जिक्र किया और आरोप लगाया कि अब पार्टी को यह दिखाने के लिए सबूत पेश करना होगा कि वह एक पीड़ित पक्ष है और कहा कि एक ’’तमाशा’’ चल रहा है।

उन्होंने कहा कि याचिका पर नोटिस 14 जुलाई को जारी किया गया था और आज तक कुछ भी प्रभावी नहीं किया गया है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि अगर अध्यक्ष अयोग्यता याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई करने से इनकार करते हैं, तो प्रत्येक मामले को अलग से निस्तारित करना होगा।

सिब्बल ने कहा, “अदालत को यह तय करना होगा कि इस मामले में अधिकरण (अध्यक्ष अयोग्यता मामलों की सुनवाई के लिए अधिकरण के रूप में काम करता है) की क्या जिम्मेदारी है।”

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एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्त अभिषेक सिंघवी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि अध्यक्ष ने कई अयोग्यता याचिकाओं को केवल इसलिए एक साथ मिलाने में चार घंटे लगा दिये क्योंकि मामला शीर्ष अदालत के सामने आना था।

पीठ ने तब कहा कि किसी को अध्यक्ष को सलाह देनी होगी क्योंकि वह शीर्ष अदालत के आदेश की अनदेखी नही कर सकते ।

सॉलिसिटर जनरल ने समस्याओं एवं अध्यक्ष के पास दायर प्रति दावों का जिक्र किया और कहा, 'मुझे उम्मीद नहीं थी कि अदालत यह सुनेगी कि वह (अध्यक्ष) दिन-प्रतिदिन क्या करते हैं...।’’

पीठ ने कहा कि अध्यक्ष ऐसी याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए एक चुनावी अधिकरण हैं और इसलिए शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी हैं।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘हमने 14 जुलाई को (ठाकरे गुट की याचिका पर) नोटिस जारी किया था। इसके बाद, हमने 18 सितंबर को एक आदेश पारित किया। अब, यह देखते हुए कि अध्यक्ष ने कोई कदम नहीं उठाया है, हम यह कहने के लिए बाध्य होंगे कि उन्हें दो महीने में फैसला लेना होगा।’’

अदालत ने कहा कि न्यायाधिकरण के समक्ष सुनवाई को पहेली नहीं बनाया जाना चाहिए और यह गंभीर कार्यवाही है।

 










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