कर्नाटक बैंक एक निजी इकाई है, कोई ‘स्टेट’ नहीं: उच्च न्यायालय

डीएन ब्यूरो

संविधान के तहत निजी क्षेत्र का कर्नाटक बैंक कोई सरकारी संस्था नहीं है और इसे वैधानिक या सार्वजनिक कर्तव्य का निवर्हन करने वाला कोई संस्थान या कंपनी करार नहीं दिया जा सकता। यह बात कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कही। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

कर्नाटक उच्च न्यायालय
कर्नाटक उच्च न्यायालय


बेंगलुरु: संविधान के तहत निजी क्षेत्र का कर्नाटक बैंक कोई सरकारी संस्था नहीं है और इसे वैधानिक या सार्वजनिक कर्तव्य का निवर्हन करने वाला कोई संस्थान या कंपनी करार नहीं दिया जा सकता। यह बात कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कही।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार बैंक के खिलाफ दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति के वी अरविंद की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘यद्यपि प्रतिवादी बैंक सार्वजनिक वित्त से जुड़े कार्य में शामिल है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित है, लेकिन इसे कोई वैधानिक या सार्वजनिक कर्तव्य निभाने वाली संस्था या कंपनी नहीं कहा जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत नहीं आने वाले प्राधिकारों को परमादेश की रिट जारी नहीं की जा सकती।’’

राजेश कुमार शेट्टी द्वारा टी सुब्बाया शेट्टी और कर्नाटक बैंक के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, जिसमें उन्हें अपने बैंक खाते से 1,24,27,826 रुपये की सावधि जमा राशि निकालने की अनुमति देने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था।

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यह विवाद सुब्बाया शेट्टी द्वारा निचली अदालत में दायर एक मुकदमे से उत्पन्न हुआ, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई थी कि वह गीता टी पुंजा और पी थिमप्पा पुंजा की वसीयत के एकमात्र निष्पादक हैं।

नवंबर 2022 में, निचली अदालत ने एक अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की थी, जिसमें मुकदमे का निपटारा होने तक किसी भी व्यक्ति को गीता पुंजा और थिमप्पा पुंजा के खातों से पैसा निकालने पर रोक लगा दी गई थी।

जब रोक हटा दी गई, तो राजेश कुमार शेट्टी ने व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए खातों में धन जारी करने के लिए अभिवेदन दायर किया।

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बैंक ने जवाब दिया कि चूंकि अदालत में मुकदमा लंबित है, इसलिए वह उन्हें पैसे निकालने की अनुमति देने में असमर्थ है। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायालय में बैंक का यह विशिष्ट तर्क था कि यहां कोई सार्वजनिक कर्तव्य या कार्य शामिल नहीं है और दूसरा प्रतिवादी (बैंक) भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सरकारी संस्था नहीं है, इसलिए बैंक के खिलाफ परमादेश रिट जारी नहीं की जा सकती।

उच्च न्यायालय ने भी कहा कि याचिका संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि दूसरा प्रतिवादी (बैंक) संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सरकारी संस्था नहीं है।










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