जम्मू-कश्मीर के पास अलग से कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है : उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के पास ऐसी कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है, जो देश के अन्य राज्यों को प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के पास ऐसी कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है, जो देश के अन्य राज्यों को प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ कहा कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता के संदर्भ का स्पष्ट अभाव है, इसके विपरीत, भारत का संविधान अपनी प्रस्तावना में इस बात पर जोर देता है कि लोगों ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का संकल्प लिया है।
इसने कहा, ‘‘जम्मू और कश्मीर राज्य के पास ऐसी कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है, जो देश के अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो।’’
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पीठ ने कहा कि देश के सभी राज्यों के पास अलग-अलग स्तर की विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘संविधान किसी विशिष्ट राज्य की खास चिंताओं को उस राज्य के लिए विशिष्ट व्यवस्थाएं प्रदान करके समायोजित करता है। अनुच्छेद 371ए से 371जे विभिन्न राज्यों के लिए विशेष व्यवस्थाओं के उदाहरण हैं। यह विषम संघवाद की एक विशेषता है, जैसे संविधान को अपनाने पर जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 370 लागू हुआ।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विषम संघवाद में, एक विशेष राज्य कुछ हद तक स्वायत्तता का आनंद ले सकता है जो दूसरे राज्य को नहीं मिलता है।
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पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, अंतर (शक्तियों के) स्तर का है, न कि प्रकार का। विभिन्न राज्यों को संघीय व्यवस्था के तहत अलग-अलग लाभ मिल सकते हैं लेकिन सामान्य सूत्र संघवाद है।’’