Assam: बाल विवाह से निपटने में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए

डीएन ब्यूरो

असम में समाज के विभिन्न वर्गों ने रविवार को राज्य सरकार से बाल विवाह के मुद्दे को मानवीय दृष्टिकोण से देखने और इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए जागरूकता पैदा करने पर अधिक जोर देने की अपील की। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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गुवाहाटी: असम में समाज के विभिन्न वर्गों ने रविवार को राज्य सरकार से बाल विवाह के मुद्दे को मानवीय दृष्टिकोण से देखने और इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए जागरूकता पैदा करने पर अधिक जोर देने की अपील की।

उल्लेखनीय है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले अपनी टिप्पणी में कहा था कि असम में बाल विवाह के खिलाफ सख्त कार्रवाई ने लोगों के ‘‘निजी जीवन में तबाही मचाई है।’’

हालांकि, हिमंत विश्व शर्मा नीत राज्य सरकार कह रही है कि बाल विवाह के खिलाफ जारी अभियान को और तेज किया जाएगा। लेकिन विपक्ष ने इस कवायद को ‘संप्रदायिक डिजाइन’ वाला एक ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया है।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि बाल विवाह के मामलों में आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की कोई जरूरत नहीं थी। उच्च न्यायालय ने बाल विवाह के आरोपियों पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम-2012 और बलात्कार के आरोप लगाने को लेकर 14 फरवरी को असम सरकार को फटकार भी लगाई थी।

साथ ही, अदालत ने कहा था कि ये ‘बिल्कुल ही विचित्र’ आरोप हैं।

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असम सरकार ने तीन फरवरी को बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी और कथित तौर पर बाल विवाह से जुड़े 3,000 से अधिक लोगों को अब तक गिरफ्तार करके अस्थायी जेलों में रखा गया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अंगशुमन बोरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘अदालत इस बारे में बिल्कुल सही है कि बाल विवाह के मामलों में गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है। समय से आरोपपत्र दाखिल करना और जागरुकता फैलाना, दो प्रमुख कार्रवाई है जो भविष्य में प्रतिरोधक का काम करेगी।’’

बोरा ने यह भी कहा कि बाल विवाह के मामले में पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार कानून के तहत आरोप लगाने की जरूरत नहीं है।

समाज विज्ञानी पल्लवी डेका ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणी ने इस मामले में कुछ नये परिप्रेक्ष्य सामने लाये हैं क्योंकि इसने पॉक्सो और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (जो बलात्कार के जुर्म से संबंधित है) लागू करने की जरूरत पर सवाल उठाए हैं।

डेका ने कहा, ‘‘यह कार्रवाई परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट के परिणामस्वरूप शुरू की गई, जिसने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (पीसीएमए) को लागू करने में राज्य की विफलता को प्रदर्शित किया था। इस विफलता ने राज्य की सामान्य एवं विशेष रूप से पिछड़े समुदायों की महिलाओं को लंबे समय तक इस सामाजिक बुराई का शिकार बनने के लिए असुरक्षित किया है।

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हांडिक गर्ल्स कॉलेज में राजनीति विज्ञान की सहायक प्रोफेसर डेका ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई इन वंचित महिलाओं को और भी हाशिये पर धकेल रही है।

असम पुलिस ने भी स्वीकार किय है कि बाल विवाह के खिलाफ अभियान जारी है और ‘कानूनन अनुमति प्राप्त फ्रेमवर्क’ के तहत गिरफ्तारी जारी रहेगी।

असम पुलिस के प्रवक्ता प्रशांत कुमार भुइयां ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम कानून के अनुरूप काम करेंगे। हमने पुलिस थानों को कानून के अनुरूप कार्रवाई करने के लिए कहा है।’’

पॉक्सो और आईपीसी की धारा 376 लगाने के सवाल पर पुलिस महानिरीक्षक भुइयां ने कहा कि प्राथमिकी में ये धाराएं पुलिस थाने में प्राप्त हुई शिकायतों के आधार पर जोड़ी गई हैं।

असम जातीय परिषद (एजेपी) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि बाल विवाह के आरोपियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई ‘प्रेरित’ है और यह राज्य के धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लक्षित है। उन्होंने कहा कि पूरे अभियान की ‘डिजाइन’ सांप्रदायिक है। 










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