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हरियाणा: होलिका दहन के दौरान झड़प में दो व्यक्तियों की मौत के मामले में 16 लोगों को उम्रकैद

हरियाणा की एक अदालत ने 2020 में होलिका दहन के दौरान हुई झड़प में एक परिवार के दो सदस्यों की मौत होने के मामले में 16 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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हरियाणा: होलिका दहन के दौरान झड़प में दो व्यक्तियों की मौत के मामले में 16 लोगों को उम्रकैद

चंडीगढ़: हरियाणा की एक अदालत ने 2020 में होलिका दहन के दौरान हुई झड़प में एक परिवार के दो सदस्यों की मौत होने के मामले में 16 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार भिवानी जिले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के. पी. सिंह की अदालत ने आरोपियों को दंगा करने, जानबूझकर चोट पहुंचाने और रोकने के लिए भी दोषी ठहराया तथा इनमें से प्रत्येक पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

जिले के बवानी खेड़ा में, नौ मार्च 2020 को होलिका दहन के दौरान दो समूहों के बीच विवाद हुआ और यह झड़प में तब्दील हो गया, जिसमें एक महिला सहित दो व्यक्तियों की मौत हो गई।

पुलिस को दिए बयान में शिकायतकर्ता अजय कुमार ने कहा कि सुरेश–दोषियों में एक–के साथ उनकी बहस हुई, लेकिन ग्रामीणों ने हस्तक्षेप कर स्थिति को संभाला था।

कुमार द्वारा पुलिस में दी गई शिकायत के अनुसार, बाद में सुरेश और कुछ अन्य लोग अजय के चाचा जगदीश से झगड़ा करने लगे। शोर सुनकर कुमार ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ मामले में हस्तक्षेप किया, लेकिन उन पर लाठी और चाकू से हमला किया गया।

शिकायत के अनुसार, घटना में उनके चचेरे भाई मनबीर और उनकी चाची सुरेश देवी की मौत हो गई।

पुलिस ने शुरू में मामले में सुरेश और पांच अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन बाद में 10 और लोगों पर मामला दर्ज किया गया। ये सभी 24 से 65 वर्ष तक की उम्र के हैं।

दोषी करार दिये गए लोगों की पहचान सुरेश, रमेश, मोनू, बलजीत, सूरज, मुकेश, अनिल, संजय, कृष्ण, अजय, सोनू, सुनील, मूर्ति, सोनू, संदीप और संजय के रूप में की गई। ये सभी बवानी खेड़ा के रहने वाले हैं।

उन्हें भारतीय दंड संहिता की धाराओं 148 (दंगा), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 341 (गलत तरीके से रोकना) और 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया गया।

अदालत ने 29 नवंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘सभी मूल सजाएं एक साथ चलेंगी। जांच और मुकदमे के दौरान दोषी की हिरासत की अवधि को उन्हें दी गई मूल सजा में समायोजित किया जाए।’’

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