Global Warming: मीथेन उत्सर्जन के केवल 13 फीसदी हिस्से का हो रहा नियमन, कठोर नीतियों की जरूरत
वैश्विक ताप में बढ़ोतरी को रोकने के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती जरूरी है पर असल में इसके कुल उत्सर्जन के केवल 13 फीसदी हिस्से का ही नियमन किया जा रहा है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
लंदन: वैश्विक ताप में बढ़ोतरी को रोकने के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती जरूरी है पर असल में इसके कुल उत्सर्जन के केवल 13 फीसदी हिस्से का ही नियमन किया जा रहा है। ऐसे में मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए अधिक कठोर नीतियों की आवश्यकता है।
एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बाद वैश्विक ताप में बढ़ोतरी का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
वर्ष 2030 तक मीथेन के वैश्विक उत्सर्जन में वर्ष 2020 के स्तर के मुकाबले 30 प्रतिशत की कटौती करने के लिए 100 से अधिक देशों ने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे।
यह एक कारगर कदम है लेकिन हमारे नए शोध से सामने आया है कि मीथेन उत्सर्जन को खत्म करने के लिए कठोर नीतियों का अब भी आभाव है।
हमारा अध्ययन मीथेन नीतियों की पहली वैश्विक समीक्षा है जिसे 1970 के दशक के बाद से दुनिया भर में अपनाया गया है। इससे पता चलता है कि सबसे बड़े स्रोतों (कृषि, ऊर्जा व अपशिष्ट) से मानवजनित मीथेन उत्सर्जन के लगभग 13 प्रतिशत हिस्से का ही उन्हें नियंत्रित करने और रोकने में सक्षम नीतियों द्वारा नियमन किया जाता है।
यदि हम विशिष्ट नीतियों द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों और कुल उत्सर्जन को लेकर रूढ़िवादी दृष्टिकोण पर गौर करें और यह भी देखें कि क्या उन्हें पूरी तरह से या आंशिक रूप से लागू किया गया है, तो यह 10 प्रतिशत तक ही रह जाता है।
ये नीतियां कंपनियों को मीथेन उत्सर्जन का पता लगाने और उससे निपटने के लिए अनिवार्य रूप से बाध्य कर सकती हैं। ऐसे उपकरण स्थापित करें जो उत्सर्जन का पता लगा सकें, मीथेन की प्रत्येक इकाई के लिए उन पर जुर्माना लगाएं या सड़ते हुए भोजन और अन्य जैविक कचरे से निकलने वाली बायोगैस के लिए उन्हें दंडित करें।
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हमारे अध्ययन से पाया गया कि अधिकतर (70 प्रतिशत) नीतियां अमेरिका और यूरोप में अपनाई गई हैं।
सीओ2 की तुलना में मीथेन में पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को बढ़ाने की क्षमता 80 गुना अधिक जिम्मेदार है, हालांकि इसका असर अपेक्षाकृत बेहद कम समय तक रहता है। मीथेन हवा में करीब एक दशक (जबकि सीओ2 हवा में सदियों तक रहती) तक रहती है और इसके उत्सर्जन को चरणबद्ध रूप से कम करके धरती के ताप को तेजी से कम किया जा सकता है।
वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मीथेन के उत्सर्जन को कम करने की तत्काल आवश्यकता है। हमारे अध्ययन में सामने आया कि जो देश इसकी कटौती के लिए प्रतिबद्ध हैं, उन्हें अब अपने उत्सर्जन को खत्म करने के लिए नीतियों का विस्तार और मजबूती से करना चाहिए। अन्य देशों को भी मीथेन के संबंध में अपने प्रयास तेज करने चाहिए।
नियमन अलग-अलग क्षेत्र में अलग है
हमने खेती, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन तथा ऊर्जा क्षेत्रों (जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल और गैस के निष्कर्षण, परिवहन और खपत सहित) में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए 79 देशों में शुरू की गई नीतियों की व्यवस्थित रूप से जांच की।
मीथेन को विनियमित करने के लिए अलग-अलग मकसद हैं। गैस न केवल जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, बल्कि यह क्षोभमंडलीय ओजोन (एक हानिकारक वायु प्रदूषक) भी उत्पन्न कर सकती है। हवा में मीथेन का संकेंद्रण विस्फोटक सीमा (5-15 प्रतिशत) तक पहुंच जाता है तो यह हानिकारक भी होगी।
हालांकि, अगर इसे एकत्र कर लिया जाए, तो मीथेन प्राकृतिक गैस के प्रमुख घटक के रूप में ऊर्जा का एक स्रोत बन जाती है। इसलिए मीथेन को विनियमित करना, उदाहरण के लिए कोयला की खान से मीथेन को एकत्र करने को प्रोत्साहित करना, सस्ता और उपयोगी हो सकता है।
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नियमन में कहां सुधार की जरूरत है
अधिक कठोर नीतियों व प्रत्येक स्रोत से कितना मीथेन उत्सर्जित हो रहा है, इसकी मात्रा निर्धारित करने के लिए एक सुसंगत दृष्टिकोण वैश्विक प्रतिबद्धताओं के अनुरूप विनियमन के वास्ते महत्वपूर्ण है। अधिक कटौती के लिए मीथेन उत्सर्जन की निगरानी में सुधार करना महत्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक रूप से, मीथेन उत्सर्जन को मापना मुश्किल और महंगा रहा है, आंशिक रूप से इसका कारण मीथेन का अदृश्य गैस होना है। सीओ2 की तुलना में मीथेन के केवल मामूली उत्सर्जन से ही काफी गर्मी हो जाती है।
लगभग हर क्षेत्र में मीथेन के प्रमुख स्रोतों की व्यापक स्तर पर अनदेखी की गई है। इनमें गायों और अन्य पशुओं की पाचक गैसें, कोयला खदानों के वेंटिलेशन शाफ्ट से निकलने वाली मीथेन, तेल तथा गैस क्षेत्र में उच्च उत्सर्जक स्रोत (तथाकथित सुपर-उत्सर्जक) तथा परित्यक्त खानों तथा तेल व गैस के कुओं निकलने वाली मीथेन शामिल है।
तेल और गैस क्षेत्र में, जहां मीथेन को कम करना अधिक किफायती हो सकता है क्योंकि संग्रहित की गई गैस का मुद्रीकरण किया जा सकता है, पेरिस समझौते जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के लिए सभी अर्थव्यवस्थाओं में जीवाश्म ईंधन की गिरती मांग के साथ-साथ उद्योग के अपने उत्सर्जन को कम करने की भी जरूरत है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक, डॉ. फतह बिरोल ने हाल ही में कहा था संयुक्त अरब अमीरात में अगला संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28) तेल और गैस से संपन्न देशों तथा जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले इन ईंधनों का दोहन करने वाले उद्योगों, दोनों के लिए ‘‘सत्य का क्षण’’ होगा।