क्या कोविड प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचाकर हमें संक्रमण के प्रति संवेदनशील बनाता है?

डीएन ब्यूरो

पिछले एक या दो महीने में अमेरिका और ब्रिटेन समेत उत्तरी गोलार्ध के कई देशों में श्वसन प्रणाली में विषाणु (वायरस) जनित संक्रमण के मामलों की लहर देखने को मिली है। पढ़िये पूरी ख़बर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फ़ाइल फ़ोटो
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मैनचेस्टर: पिछले एक या दो महीने में अमेरिका और ब्रिटेन समेत उत्तरी गोलार्ध के कई देशों में श्वसन प्रणाली में विषाणु (वायरस) जनित संक्रमण के मामलों की लहर देखने को मिली। इसके अंतर्गत रेस्पिरेटरी सिंसिटल वायरस (आरएसवी), फ्लू और कोविड-19 के संक्रमण सभी उम्र के लोगों में मिले।

इसके अलावा बच्चों में स्ट्रेप-ए जैसे जीवाणु जनित संक्रमण भी देखने को मिले। कभी-कभी ये संक्रमण बहुत गंभीर भी हो सकते हैं। ब्रिटेन में सर्दियों के दौरान अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है जिससे स्वास्थ्य सेवा पर और दबाव बढ़ गया है।

इस स्थिति ने कुछ लोगों को यह सवाल करने के लिए प्रेरित किया कि क्या कोविड-19 हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा है और पहले संक्रमित हो चुके लोगों में फ्लू जैसे अन्य संक्रामक रोगों का जोखिम बढ़ाता है।

श्वसन प्रणाली में विषाणु जनित संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी की व्याख्या से जुड़ा एक अन्य विचार यह है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान बच्चे बचपन में होने वाले सामान्य संक्रमण से ‘बच गये’ जिसने उन्हें ‘प्रतिरक्षा कमी’ के कारण अब इन संक्रमण के प्रति और अधिक संवेदनशील बना दिया है यानी इन वायरस से वे आसानी से बीमार हो सकते हैं। लेकिन यह व्याख्या कितनी भरोसेमंद है?

 

कोविड और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली?

मानव प्रतिरक्षा प्रणाली विभिन्न तरह के संक्रमण के कारकों से निपटने के लिए विकसित होती है। मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के पास विभिन्न प्रकार के हथियार होते हैं जो एकसाथ मिलकर ना केवल संक्रामक एजेंटों (वायरस, बैक्टीरिया आदि) का सफाया करते हैं, बल्कि इन एजेंट से बाद में संक्रमण होने पर इनके प्रति अधिक तीव्र और कारगर प्रतिक्रिया देने के लिए उन्हें याद भी रखते हैं।

लेकिन कई संक्रामक एजेंट अपने अंदर इस तरह की तरकीब विकसित कर लेते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा दे देती है जैसे कि ‘सिस्टोसोमा मानसोनी’ नामक परजीवी खुद को इस तरह छिपा लेता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली इसका पता नहीं लगा पाती।

इसी तरह सार्स-कोव-2 नामक वायरस कोविड-19 से संक्रमित करता है। यह अन्य वायरस की तरह प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा दे देता है खासकर इसके ताजा प्रकार।

 

कुछ अपवाद

बहुत से अन्य वायरस की तरह सार्स-कोव-दो सभी लोगों को समान रूप से प्रभावित नहीं करता। कुछ समय से हम जानते हैं कि कुछ समूहों (जिसमें बुजुर्ग और शुगर तथा मोटापे समेत अन्य रोगों से पीड़ित लोग शामिल हैं) को कोविड-19 से संक्रमित होने पर गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका रहती है।

यह कमजोरी कोरोना वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली के अनियमित प्रतिक्रिया से जुड़ी है जिसका परिणाम सूजन के रूप में दिखता है। यहां हम देखते हैं कि लिंफोसाइट्स की संख्या में कमी हो जाती है और फैगोसाइट्स के रूप में जानी जाने वाली प्रतिरक्षा कोशिका में परिवर्तन हो जाता है।

इसके बावजूद कमजोर प्रतिरक्षा वाले इन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली दो से चार महीनों में सामान्य हो जाती है, लेकिन कुछ लोगों खासकर कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित लोगों या जो अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं, उनमें कुछ परिवर्तन संक्रमण के छह महीने बाद तक रह सकते हैं।

लॉन्ग कोविड क्या है?

प्रमाण बताते हैं कि कोविड-19 संक्रमण के बाद प्रतिरक्षा कोशिकाओं में सबसे अधिक स्पष्ट और अनवरत अंतर उन लोगों में दिखता है जिनमें लांग कोविड विकसित होता है।

हालांकि, अब तक लांग कोविड के मरीजों में प्रतिरक्षा क्षमता कम होने का कोई आंकड़ा नहीं मिला है। एक अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया वास्तव में नुकसान पहुंचा सकती है, लांग कोविड के रोगियों की प्रतिरक्षा कोशिका में दिखने वाला परिवर्तन जोरदार प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के अनुरूप लगता है। यह लांग कोविड से पीड़ित लोगों में संक्रमण बाद की जटिलताओं और लक्षणों की व्याख्या कर सकता है।

प्रतिरक्षा कमी (इम्यून डेब्ट)

प्रतिरक्षा कमी (इम्यून डेब्ट) एक परिकल्पना है जिसके तहत माना जाता है कि ‘लॉकडाउन’ के दौरान बाहर की दुनिया में संपर्क में नहीं आने पर प्रतिरक्षा शक्ति का विकास ध्वस्त हो गया खासकर बच्चों में। इसके तहत माना जाता है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पूर्व के ‘ज्ञान’ को भूल जाती है और इसके कारण व्यक्ति संक्रमण से बचाव के लिहाज से और अधिक कमजोर हो जाता है।










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