

फिल्म छावा में विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना संभाजी महाराज और महारानी येसूबाई के किरदार में नज़र आएंगे। इस फिल्म की रिलीज से पहले इसकी कहानी के बारे में जानते हैं। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की पूरी रिपोर्ट
मुंबई: “अग्नि भी वो, पानी भी वो, तूफान भी वो, शेर शिवा का छावा है वो।” ये शब्द हैं विक्की कौशल की आने वाली फिल्म 'छावा' के। इस फिल्म में विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना संभाजी महाराज और महारानी येसूबाई के किरदार में नज़र आएंगे। इस फिल्म के पोस्टर्स रिलीज कर दिए गए हैं, जिनमें विक्की कौशल संभाजी महाराज के रूप में रौद्र और शाही अवतार नजर आ रहे हैं। तो वहीं रश्मिका मंदाना महारानी येसूबाई के रूप में नाक में नथ और माथे पर बिंदिया लगाए दिखाई दे रही हैं। इस फिल्म में आप ऐतिहासिक गाथा की एक झलक देख पाएंगे, जो आपको मराठा साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाएगी। चलिए फिल्म से पहले हम आपको मराठा इतिहास से रू-ब-रू करवा देते हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, वीर शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, सन 1657 ई में तत्कालीन महाराष्ट्र स्थित पुरन्दर के किले में हुआ था। ये बचपन से ही अपने पिता शिवाजी महाराज के जैसे वीर योद्धा थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था। संभा जी बचपन से ही राजनीति के ज्ञाता रहे और कई अवसरों पर उन्होंने अपनी कुशलता का परिचय भी दिया। संभाजी की मां सईबाई का निधन उनके जन्म के कुछ समय बाद ही हो गया था, ऐसे में संभाजी का पालन पोषण दादी ने किया।
सौतेली मां ने डाली फूंट?
कहा जाता है कि संभा जी की सौतेली मां अपने बेटे राजाराम को राजा बनाना चाहती थीं। इसलिए वह शिवाजी जी मन में संभा जी के लिए नफरत पैदा करती थीं। इससे शिवाजी और संभाजी के बीच अविश्वास बना रहता था। एक बार शिवाजी ने उन्हें किसी वजह से कारावास में डलवा दिया था। जहां से वह भागकर मुगलों से जा मिले, लेकिन मुगलों का हिन्दुओं के लिए क्रूर स्वभाव को देखकर वह फिर से अपने राज लौट आए। औरंगजेब के कारावास से भागते समय उनकी मुलाकात ब्राह्मण कवि कलश से हुई, जो आगे चलकर उनके सलाहकार बने।
संभाजी के खिलाफ विद्रोह
शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद संभाजी राजा बने और उन्होंने अपने पिता के सहयोगियों को पद से बर्खास्त कर नया मंत्रिमंडल बनाया इन्होंने कवि कलश को अपना सलाहकार बनाया। इन्हें मराठी भाषा का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था। इसे शिवाजी के सहयोगियों ने अपमान मानकर संभाजी के खिलाफ आंतरिक विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इसी विद्रोह के चलते संभाजी मुगलों से लड़ाई में हार गए। इसके बाद उन्हें बंदी बनाकर गंभीर मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गईं, लेकिन महादेव के भक्त संभाजी ने मरते दम तक हार नहीं मानी और 11 मार्च, 1689 को उन्हें वीरगति प्राप्त हुई।
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