आखिर क्यों ग्लोबल वार्मिंग को काबू में रखना है इतना मुश्किल, पढ़ें ये ताजा रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

लंदन में दो सप्ताह की गहन वार्ता के बाद वैश्विक नौपरिवहन (शिपिंग) उत्सर्जन को कम करने की एक संशोधित रणनीति सामने आई है। यह नौ परिवहन उद्योग की जलवायु लक्ष्यों में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रतीक है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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मेलबर्न: लंदन में दो सप्ताह की गहन वार्ता के बाद वैश्विक नौपरिवहन (शिपिंग) उत्सर्जन को कम करने की एक संशोधित रणनीति सामने आई है। यह नौ परिवहन उद्योग की जलवायु लक्ष्यों में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रतीक है।

हालांकि पर्याप्त महत्वाकांक्षी न होने के कारण संशोधित रणनीति की आलोचना की गई है। वैश्विक व्यापार और दुनिया के नौ परिवहन बेड़े में अनुमानित वृद्धि का मतलब है कि निजी जहाजों की संख्या में आवश्यक कटौती समग्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य से कहीं अधिक है।

अंतरराष्ट्रीय नौ परिवहन के नए लक्ष्य हैं:

*(2008 के आधार बिंदु से) 20 प्रतिशत, 2030 तक 30 प्रतिशत की कटौती की कोशिश।

*2040 तक 70 प्रतिशत की कटौती, 80 प्रतिशत के लिए प्रयास।

*2050 तक या उसके आसपास शून्य उत्सर्जन।

हमारी गणना के अनुसार रणनीति के तहत 2030 तक प्रति जहाज उत्सर्जन में 60 प्रतिशत तक और 2040 तक 91 प्रतिशत तक कटौती की आवश्यकता होगी। इसका मतलब है कि जीवाश्म-ईंधन वाले जहाजों के दिन गिने-चुने रह गए हैं।

दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की ओर बढ़ रही है, हालांकि इस दौरान नौ परिवहन उद्योग दुनिया के उन शीर्ष 10 उद्योगों में शुमार हैं, जो सबसे ज्यादा उत्सर्जन करते हैं। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के लिए इस उद्योग को भी अपना उचित योगदान देना होगा।

नौ परिवहन का नियमन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के लंदन मुख्यालय में संशोधित रणनीति पर चर्चा की गई।

इस दौरान न्यूजीलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा समेत प्रशांत प्रायद्वीप से संबंध रखने वाले देशों ने 2030 तक कम से कम 37 प्रतिशत, 2040 तक 96 प्रतिशत और 2050 तक पूरी तरह नेट जीरो उत्सर्जन का प्रस्ताव रखा। 2018 में अपनाई गई प्रारंभिक रणनीति का लक्ष्य 2050 तक नौ परिवहन उत्सर्जन को कम से कम 50 प्रतिशत तक कम करना था।

संशोधित रणनीति के लक्ष्य विज्ञान और विभिन्न देशों की सरकारों के विचार से ऊंचे नहीं हैं। हालांकि, जहाजों के लिहाज से ये लक्ष्य अब भी बहुत सख्त हैं।

जहाजों की संख्या में 2008 के बाद से 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, आगे भी वृद्धि की उम्मीद है। जहाजों की बढ़ती संख्या का मतलब है कि 2030 तक प्रति जहाज औसत उत्सर्जन में 54 से 60 प्रतिशत और 2040 तक 86 से 91 प्रतिशत की कटौती की आवश्यकता होगी।

संशोधित रणनीति से पहले, आईएमओ की नीति नए और मौजूदा जहाजों की ऊर्जा दक्षता व कार्बन उत्सर्जन में सुधार पर केंद्रित थी। यह नीति नौ परिवहन उत्सर्जन पर लगाम लगाने में विफल रही।

‘क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर’ के सबसे हालिया विश्लेषण ने निष्कर्ष निकाला कि प्रारंभिक रणनीति ने नौ परिवहन को 3-4 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के अनुरूप रखा।

अगर यह मान लें कि रणनीति के तहत जो कदम उठाए जाएंगे, वे प्रभावी साबित होंगे तब नए लक्ष्य तुलनात्मक रूप से कितने उपयोगी होंगे, यह पता लगाने के लिए उनका वर्तमान कसौटियों पर मूल्यांकन किया जा सकता है।

इस हिसाब से देखें तो ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक उत्सर्जन-कटौती का जो पैमाना है, उसके अनुरूप नौ परिवहन उत्सर्जन में कमी नहीं आई है। यह जीवाश्म ईंधन के अंत की शुरुआत का प्रतीक है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ पर लगाम लगाने नौ परिवहन से होने वाले उत्सर्जन पर काबू पाना बेहद जरूरी है।










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