New Delhi: हिंदू धर्म में रक्षासूत्र, मौली या कलावा को एक पवित्र धागा माना जाता है जो लाल और पीले रंग का होता है। इसे विशेष रूप से पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ, रक्षाबंधन और अन्य धार्मिक कार्यों के दौरान कलाई पर बांधा जाता है। मान्यता है कि यह बुरी शक्तियों से रक्षा करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। कलावे का लाल रंग मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। जो ऊर्जा, बल, साहस और पराक्रम को दर्शाता है। वहीं पीला रंग गुरु ग्रह से जुड़ा होता है। जो ज्ञान, समृद्धि और उन्नति का प्रतीक है। जब कोई व्यक्ति अपने दाहिने हाथ में कलावा बांधता है तो वह दोनों ग्रहों की शुभ ऊर्जा को प्राप्त करता है।
21 दिन बाद क्यों उतारें कलावा?
ज्योतिष के अनुसार, कलावा बांधने के 21 दिन बाद उसका सकारात्मक प्रभाव समाप्त होने लगता है। उसके बाद वह सिर्फ एक सामान्य धागा बन जाता है और कभी-कभी नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने लगता है। कई लोग महीनों तक वही पुराना कलावा हाथ में बांधे रहते हैं या उसी के ऊपर नया कलावा बांध लेते हैं, जो कि ज्योतिष के अनुसार अनुचित है। ऐसा करने से रक्षासूत्र का शुभ प्रभाव नहीं मिलता, बल्कि यह दुर्भाग्य का कारण भी बन सकता है।
पुराना कलावा उतारने के नियम
• कलावा को 21 दिन बाद शुभ मुहूर्त में ही उतारना चाहिए।
• इसे फर्श पर या कूड़ेदान में फेंकना अशुभ माना जाता है।
• कलावे को उतारने के बाद गमले की मिट्टी में दबा देना या पीपल/बरगद जैसे पवित्र वृक्ष के नीचे respectfully रख देना श्रेष्ठ माना गया है।
• यह प्राकृतिक रूप से मिट्टी में मिल जाता है और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
कलावा बांधते समय ध्यान रखें ये बातें
1. पुरुषों को दाहिने हाथ में और महिलाओं को बाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए।
2. कलावा बांधने से पहले स्नान कर लें और भगवान की पूजा करें।
3. कलावा हमेशा किसी विद्वान ब्राह्मण या परिवार के बुजुर्ग से ही बंधवाना शुभ होता है।
4. एक बार में एक ही कलावा बांधें, पुराना हटाने के बाद ही नया कलावा लगाएं।
धार्मिक परंपरा या वैज्ञानिक सोच?
धार्मिक मान्यता के साथ-साथ कलावे का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह कलाई के उस हिस्से पर बंधा जाता है जो शरीर की कई नसों से जुड़ा होता है। यह स्थान शरीर में ऊर्जा का प्रवाह नियंत्रित करता है। कलावा बांधने से मांसपेशियों में संतुलन, रक्त संचार और मानसिक शांति में सहायता मिलती है।