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अंतरिक्ष से धरती पर वापसी: एस्ट्रोनॉट्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? जानें सबकुछ

आज भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और उनके साथी एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से धरती पर लौटेंगे। अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटने की प्रक्रिया बेहद जटिल और सावधानीपूर्वक नियोजित होती है। इसके लिए एस्ट्रोनॉट्स को एक विशेष अंतरिक्ष यान, जैसे "ड्रैगन" यान में सवार होकर एक निश्चित प्रक्रिया के तहत पृथ्वी पर लैंड करना होता है। यह प्रक्रिया चार मुख्य चरणों में पूरी होती है। तो चलिए जानते हैं इसका पूरा प्रोसेस क्या होता है...
Post Published By: Asmita Patel
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अंतरिक्ष से धरती पर वापसी: एस्ट्रोनॉट्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? जानें सबकुछ

New Delhi: आज भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और उनके साथी एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी पर लौटेंगे। यह मिशन उनके लिए पहली अंतरिक्ष यात्रा थी और वे अब करीब 22 घंटे लंबी यात्रा के बाद सुरक्षित रूप से कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर उतरेंगे।

कैसे होती है अंतरिक्ष से पृथ्वी पर वापसी?

अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटने की प्रक्रिया एक जटिल और सावधानीपूर्वक नियोजित प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण शामिल होते हैं। एस्ट्रोनॉट्स को वायुमंडल में प्रवेश करते समय बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

अंतरिक्ष यान से पृथ्वी में प्रवेश करने की प्रक्रिया

अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर लौटने के लिए एक खास प्रकार के अंतरिक्ष यान में बैठना होता है जिसे एस.एस.एस. कहा जाता है। शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम जिस यान से लौट रहे हैं, वह “ड्रैगन” यान है। यह यान एक विशेष कैप्सूल से जुड़ा होता है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते वक्त यान से अलग हो जाता है।

वायुमंडल में प्रवेश और हीट शील्ड की भूमिका

जब कैप्सूल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो घर्षण के कारण तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है। इस समय कैप्सूल की सुरक्षा के लिए उसे एक हीट शील्ड से लैस किया जाता है, जो अत्यधिक गर्मी से बचाता है। यह हीट शील्ड कैप्सूल की संरचना को सुरक्षित रखती है और उसे अत्यधिक तापमान से बचाती है। इस समय कैप्सूल को बड़ी तेजी से गति प्राप्त होती है, जिससे कई संभावित खतरों का सामना करना पड़ता है।

स्पीड को नियंत्रित करना और स्प्लैशडाउन

अब जब कैप्सूल पृथ्वी की ओर तेजी से बढ़ रहा होता है तो उसे धीमा करना एक और बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर पैराशूट्स का इस्तेमाल किया जाता है। जो कैप्सूल की गति को कम करने में मदद करते हैं। पैराशूट्स काफी बड़े होते हैं और इन्हें विशेष रूप से इस प्रक्रिया के लिए डिज़ाइन किया जाता है। इस प्रक्रिया को “स्प्लैशडाउन” कहा जाता है, जहां कैप्सूल को समुद्र में सुरक्षित रूप से उतारा जाता है। सुभांशु और उनकी टीम का कैप्सूल कैलिफोर्निया के समुद्र तट पर उतरेगा।

पुनर्वास प्रक्रिया और स्वास्थ्य जांच

अंतरिक्ष से लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स को एक पुनर्वास प्रक्रिया से गुजरना होता है। जिसमें उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। खासतौर पर, उन्हें कुछ दिनों तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है, ताकि उनके शरीर पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का प्रभाव न पड़े। यह प्रक्रिया 7 दिनों तक चल सकती है, ताकि एस्ट्रोनॉट्स का शरीर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में ढल सके और वे सामान्य स्थिति में वापस आ सकें।

22 घंटे लंबा सफर

शुभांशु शुक्ला और उनके साथियों के लिए यह सफर बहुत ही महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है। वे आज (मंगलवार) लगभग भारतीय समयानुसार दोपहर 3 बजे कैलिफोर्निया के समुद्र तट पर सुरक्षित रूप से उतरेगें। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग साढ़े 22 घंटे का समय लगेगा, जिसमें ड्रैगन कैप्सूल की गति और पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ सावधानी से पृथ्वी पर सुरक्षित लैंडिंग की प्रक्रिया शामिल है।

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