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Som Pradosh Vrat: 3 नवंबर को रखा जाएगा सोम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका महत्व

इस साल सोम प्रदोष व्रत 3 नवंबर को रखा जाएगा। यह दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस बार कई शुभ योगों के साथ पड़ रहा है। प्रदोष काल में की गई पूजा से मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है। यहां जानिए शुभ मुहूर्त और तिथि समेत सभी अहम जानकारी।
Post Published By: Nidhi Kushwaha
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Som Pradosh Vrat: 3 नवंबर को रखा जाएगा सोम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका महत्व

New Delhi: हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर महीने दो बार त्रयोदशी तिथि को पड़ता है। जब प्रदोष व्रत सोमवार के दिन आता है, तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस वर्ष कार्तिक मास में सोम प्रदोष व्रत 3 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन शिवभक्त पूरे विधि-विधान से भगवान भोलेनाथ की आराधना करेंगे।

शुभ मुहूर्त और तिथि

पंचांग के अनुसार, प्रदोष तिथि 3 नवंबर की सुबह 5 बजकर 07 मिनट से शुरू होगी और 4 नवंबर की सुबह 2 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। प्रदोष काल में पूजा का शुभ समय शाम 5 बजे से रात 8 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा करने की कुल अवधि तीन घंटे की है।

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सोम प्रदोष व्रत का महत्व

ज्योतिष के अनुसार, सोम प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। यह व्रत मानसिक शांति, शारीरिक सुख और पारिवारिक सौहार्द प्रदान करता है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से व्रत रखता है और संध्या बेला में शिवजी की आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

पूजन विधि

सोम प्रदोष व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके साफ और हल्के रंग के कपड़े पहनें। दिनभर व्रत रखने के बाद गोधूलि बेला में शिव मंदिर जाएं या घर में शिवलिंग की पूजा करें। शिवलिंग का अभिषेक कच्चे दूध, गंगाजल, शहद और पंचामृत से करें। इसके बाद बेलपत्र, भस्म, सफेद चंदन, धतूरा और फूल चढ़ाएं।

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इसके बाद दीपक और धूप जलाकर भगवान शिव की आरती करें। आरती के दौरान “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा के अंत में शिवजी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

शिव पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री

प्रदोष व्रत की पूजा में घी, दूध, कपूर, सुपारी, जनेऊ, कलावा, पंचामृत, भांग, बेलपत्र, गंगाजल, शहद, कनेर का फूल और काला तिल शामिल करना चाहिए। साथ ही, शिवजी की आरती “ॐ जय शिव ओंकारा” का गायन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

कथा और मान्यता

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें “नीलकंठ” कहा गया। उस समय त्रयोदशी तिथि थी, इसलिए शिव भक्त इस दिन व्रत रखकर उनके प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट करते हैं।

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