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Devuthani Ekadashi: शुरू होंगे शुभ कार्य, त्रिस्पर्शा योग में मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी; जानें क्यों कहा जाता इसे मंगलकारी दिन

देवउठनी एकादशी 2 नवंबर 2025 को त्रिस्पर्शा योग में मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागेंगे और चातुर्मास का समापन होगा। इस दुर्लभ संयोग में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है, जो कन्यादान के समान पुण्य प्रदान करता है। इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
Post Published By: Sapna Srivastava
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Devuthani Ekadashi: शुरू होंगे शुभ कार्य, त्रिस्पर्शा योग में मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी; जानें क्यों कहा जाता इसे मंगलकारी दिन

New Delhi: हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल देवउठनी एकादशी (देवोत्थान एकादशी) 2 नवंबर 2025, रविवार को मनाई जाएगी। इस बार का यह पर्व बेहद खास रहेगा क्योंकि इस दिन त्रिस्पर्शा योग बन रहा है। यह एक दुर्लभ खगोलीय संयोग है, जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तीनों तिथियां एक साथ पड़ती हैं।

श्री लक्ष्मीनारायण एस्ट्रो सॉल्यूशन अजमेर की निदेशिका ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे से शुरू होकर 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे तक रहेगी। चूंकि उदया तिथि 2 नवंबर को है, इसलिए देवउठनी एकादशी इसी दिन मनाई जाएगी।

भगवान विष्णु के जागरण का पर्व

देवउठनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि चार माह के चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हैं। इन चार महीनों में सभी शुभ कार्य, विवाह, गृहप्रवेश और संस्कारिक आयोजन वर्जित रहते हैं।

2 नवंबर को जब भगवान विष्णु जागेंगे, तो चातुर्मास का समापन होगा और शुभ एवं मांगलिक कार्यों की पुनः शुरुआत होगी। इसे हरि जागरण या देवोत्थान पर्व के नाम से भी जाना जाता है।

त्रिस्पर्शा योग में मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी

त्रिस्पर्शा योग का महत्व

त्रिस्पर्शा योग अत्यंत दुर्लभ माना जाता है। जब एक ही दिन तीन तिथियां एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी एक साथ पड़ती हैं, तो इसे त्रिस्पर्शा योग कहा जाता है। पद्म पुराण में इस योग को अत्यंत शुभ बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी पापों का नाश होता है और भाग्योदय के द्वार खुलते हैं।

ज्योतिषाचार्या नीतिका शर्मा के अनुसार, “देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त पूजा करनी चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और जीवन में समृद्धि बढ़ती है।”

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तुलसी विवाह का विशेष महत्व

देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है और घर में सौभाग्य, समृद्धि और सुख का वास होता है।

इस दिन भक्तजन व्रत रखकर, भगवान विष्णु की पूजा और तुलसी पर दीपदान करते हैं। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।

धार्मिक आस्था और शुभ संयोग

देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि आध्यात्मिक जागरण और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है। इस वर्ष का यह दुर्लभ त्रिस्पर्शा योग भक्तों के लिए विशेष फलदायी रहेगा। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से जीवन में सौभाग्य और सफलता के द्वार खुलते हैं तथा सभी कष्टों का निवारण होता है।

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इस तरह 2 नवंबर को पड़ने वाली देवउठनी एकादशी इस साल न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

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