New Delhi: छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो चुकी है और आज इस पर्व का तीसरा दिन है। यह दिन संध्या अर्घ्य के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। व्रती महिलाएं सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना कर अपने परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी आयु की कामना करती हैं।
छठ पर्व मुख्य रूप से सूर्यदेव और उनकी पत्नी उषा व प्रत्यूषा को समर्पित है। यह त्योहार साल में दो बार कार्तिक और चैत्र महीने में मनाया जाता है। माना जाता है कि छठ का व्रत करने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है और जीवन में संतुलन आता है।
डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
छठ महापर्व में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना कृतज्ञता और संतुलन का प्रतीक माना जाता है। जहां अधिकांश त्योहार उगते हुए सूर्य की पूजा से जुड़े हैं, वहीं छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें पहले डूबते सूर्य और फिर उगते सूर्य की उपासना की जाती है।
Chhath Puja 2025: छठ पूजा का जश्न विदेशों में भी, लंदन से दुबई तक गूंज रही है भक्ति की झंकार
पौराणिक मान्यता के अनुसार, डूबते सूर्य को दिया गया अर्घ्य सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है। प्रत्यूषा सूर्य की अंतिम किरण का प्रतीक हैं, जो दिन के अंत में जीवन के संतुलन और स्वीकार्यता का संदेश देती हैं। यह अनुष्ठान प्रकृति के प्रति आभार और मानव जीवन में स्थिरता की भावना दर्शाता है।
शाम को सूर्य को अर्घ्य देने की विधि
छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का विशेष आयोजन होता है। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं और बांस की सूप (डालिया) में पूजा सामग्री सजाती हैं जैसे फल, ठेकुआ, नारियल, दीपक, गन्ना, मिठाई और सुपारी। इसके बाद वे नदी, तालाब या आंगन में जल से भरे पात्र के सामने खड़ी होकर सूर्यदेव की दिशा में मुख करती हैं।
“ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जप करते हुए सूर्य को जल अर्पित किया जाता है। अर्घ्य के दौरान व्रती छठी मइया के गीत गाती हैं और परिवार की समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। संध्या अर्घ्य के बाद व्रती महिलाएं रातभर जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी करती हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने का सही तरीका
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने के लिए विशेष नियम और विधियां बताई गई हैं:
1. तांबे के बर्तन से सूर्य को अर्घ्य देना सबसे शुभ माना जाता है। तांबे के पात्र से निकलने वाला जल सूर्य की किरणों से परावर्तित होकर शरीर को सकारात्मक ऊर्जा देता है।
2. अर्घ्य के जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल फूल मिलाना शुभ होता है।
3. अर्घ्य देने का सर्वश्रेष्ठ समय सूर्योदय या सूर्यास्त का एक घंटा पहले-पहले माना जाता है।
4. अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणों पर ध्यान केंद्रित करें और “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का 11 बार जप करें।
5. इसके बाद सूर्य की ओर मुख करके तीन परिक्रमा करें।
6. अर्घ्य के दौरान गायत्री मंत्र का उच्चारण भी शुभ फल देता है।
7. सूर्य को अर्घ्य हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुख करके देना चाहिए।
धार्मिक दृष्टि से यह प्रक्रिया सूर्यदेव के प्रति आभार व्यक्त करने और आत्मशुद्धि का प्रतीक है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह सूर्य ऊर्जा के सेवन और शरीर में विटामिन D के संतुलन से जुड़ी मानी जाती है।
छठ पूजा पर छुट्टियों की लिस्ट जारी! दिल्ली से लेकर बिहार तक जानें कहां बंद रहेंगे स्कूल और ऑफिस
अर्घ्य का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
डूबते सूर्य को अर्घ्य देना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक ऊर्जात्मक साधना भी है। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों की तीव्रता कम होती है, जिससे शरीर को बिना हानि के प्राकृतिक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह अभ्यास मन की शांति, एकाग्रता और आत्म-नियंत्रण को बढ़ाता है।
पंडितों के अनुसार, यह अर्घ्य हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में जो अस्त हो रहा है, उसे भी आभारपूर्वक स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि हर अंत एक नई शुरुआत की ओर संकेत देता है जैसे सूर्यास्त के बाद अगली सुबह का उगता सूरज।

