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Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला ने रचा इतिहास, 28 घंटे के सफर के बाद पहुंचे ISS

भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला 28 घंटे के सफर के बाद Axiom-4 मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पहुंच गए हैं।
Post Published By: Sapna Srivastava
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Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला ने रचा इतिहास, 28 घंटे के सफर के बाद पहुंचे ISS

नई दिल्ली: भारत ने एक बार फिर अंतरिक्ष जगत में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने इतिहास रचते हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर कदम रख दिया है। वह Axiom-4 मिशन का हिस्सा हैं, जिसे अमेरिका की प्राइवेट स्पेस कंपनी SpaceX ने लॉन्च किया है। शुभांशु इस स्टेशन पर पहुंचने वाले पहले भारतीय नागरिक बन गए हैं, जो न केवल देश बल्कि पूरी मानवता के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

28 घंटे का ऐतिहासिक सफर

Axiom-4 मिशन के तहत शुभांशु और अन्य तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने 25 जून को भारतीय समयानुसार फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी थी। यह मिशन SpaceX के फाल्कन 9 रॉकेट की सहायता से लॉन्च किया गया। उनके साथ मौजूद ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ने 28 घंटे के लंबे और जटिल सफर के बाद 26 जून की शाम 4:30 बजे सफलतापूर्वक ISS पर डॉकिंग कर ली।

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (सोर्स-इंटरनेट)

डॉकिंग का क्या मतलब है?

डॉकिंग एक तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें किसी यान को अंतरिक्ष स्टेशन से जोड़ दिया जाता है। इसका मतलब होता है कि अब अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित रूप से स्टेशन के अंदर प्रवेश कर सकते हैं और वहां के संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। डॉकिंग के साथ ही शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम का वास्तविक मिशन शुरू हो गया है।

ISS पर होंगे 60 से ज्यादा वैज्ञानिक प्रयोग

Axiom-4 मिशन के तहत शुभांशु और उनकी टीम को करीब 14 दिनों तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहना है। इस दौरान वे लगभग 60 साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स को अंजाम देंगे। इन प्रयोगों में माइक्रोग्रैविटी, मानव शरीर पर अंतरिक्ष के प्रभाव, नई दवाओं का परीक्षण और पर्यावरण से संबंधित रिसर्च शामिल हैं। यह अब तक का Axiom मिशन का सबसे वैज्ञानिक रूप से समृद्ध मिशन माना जा रहा है।

भारत के लिए गर्व का क्षण

शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान भारत के लिए एक नई शुरुआत है। जहां इसरो (ISRO) पहले से ही चंद्रयान और गगनयान जैसे अभियानों से देश को गौरवान्वित कर रहा है, वहीं अब प्राइवेट और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से भारतीय वैज्ञानिकों और यात्रियों को वैश्विक मंच पर अवसर मिल रहे हैं। शुभांशु का यह सफर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने वाला साबित होगा।

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