New Delhi: सोवियत संघ के टूटने (1991) के बाद मध्य एशिया में कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे नए मुस्लिम बहुल राष्ट्र बने। इनमें से तीन की सीमाएं चीन से जुड़ी थीं। उस समय रूस कमजोर हो चुका था और चीन भी उतना बड़ा खिलाड़ी नहीं था, जितना आज है। रूस और चीन को खतरा था कि अमेरिका इन देशों को अपने प्रभाव में ले सकता है। साथ ही इस्लामी कट्टरवाद और आतंकवादी संगठनों के बढ़ने का डर भी था। इसी संदर्भ में 1996 में शंघाई में “शंघाई फाइव” की नींव पड़ी। जिसमें चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे। 2001 में उजबेकिस्तान के जुड़ने के साथ ही यह औपचारिक रूप से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बन गया।
आज के SCO सदस्य देश
•रूस
•चीन
•कजाखस्तान
•किर्गिस्तान
•ताजिकिस्तान
•उजबेकिस्तान
•भारत
•पाकिस्तान
•ईरान
•बेलारूस
भारत 2017 में इस संगठन का हिस्सा बना। खास बात यह है कि तुर्कमेनिस्तान ने शुरू से ही किसी भी संगठन से दूरी बनाए रखी और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई।
संगठन का मुख्य उद्देश्य
हालांकि SCO कोई सैन्य गठबंधन नहीं है, लेकिन इसका मकसद काफी रणनीतिक है।
• मध्य एशिया में आतंकवाद और कट्टरवाद को रोकना
• क्षेत्रीय सुरक्षा बनाए रखना
• सदस्य देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाना
यानी सरल शब्दों में कहें तो यह संगठन रूस और चीन का साझा मोर्चा है, जिसका असर धीरे-धीरे वैश्विक राजनीति में बढ़ रहा है।
भारत के लिए SCO की अहमियत
1. आतंकवाद पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का मौका- भारत SCO की बैठकों में लगातार पाकिस्तान की आतंकी नीतियों को उजागर करता है।
2. भारत-रूस संबंधों को मजबूत करना- रूस भारत का पारंपरिक मित्र रहा है, SCO दोनों देशों को और करीब लाने का अवसर देता है।
3. भारत-चीन संवाद का मंच- सीमा विवाद और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के बीच भी SCO दोनों देशों को आमने-सामने बैठने और संवाद का अवसर देता है।
4. रणनीतिक संतुलन- अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर और बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच SCO भारत को संतुलन साधने का मौका देता है।
पाकिस्तान की मुश्किलें
SCO का सबसे बड़ा विरोधाभास पाकिस्तान की मौजूदगी है। संगठन का मूल उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई है, जबकि पाकिस्तान पर लंबे समय से आतंकवाद को पनाह देने और बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। भारत ने हमेशा SCO के मंच का इस्तेमाल पाकिस्तान को घेरने के लिए किया है। यदि भारत इस संगठन से दूरी बना ले, तो पाकिस्तान को खुला मैदान मिल जाएगा। इसके अलावा, रूस और ईरान जैसे देशों की मौजूदगी पाकिस्तान की स्थिति को कमजोर कर देती है। अमेरिका से बढ़ती नजदीकियों के चलते भी पाकिस्तान पर अन्य सदस्य देशों की नजर बनी रहती है।
SCO समिट 2025: भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कई स्तरों पर अहम होगी।
•भारत आतंकवाद और सीमा सुरक्षा के मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करेगा।
•रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा सहयोग को और आगे बढ़ाया जाएगा।
•चीन के साथ जटिल संबंधों के बावजूद व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता पर संवाद होगा।
•भारत इस मंच का उपयोग मध्य एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्तों को गहरा करने में करेगा।
सौ बात की एक बात
SCO किसी एक देश का संगठन नहीं बल्कि एक बड़ा “रणनीतिक खेल का मैदान” है। यहां भारत की मौजूदगी अनिवार्य है।
•यह मंच भारत को पाकिस्तान की आतंकी नीतियों पर हमला करने का मौका देता है।
•रूस और चीन जैसे ताकतवर देशों के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देता है।
•और सबसे बढ़कर, बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की भूमिका को मजबूत करता है।
यानी साफ है कि SCO समिट 2025 भारत के लिए सिर्फ एक बैठक नहीं, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक भविष्य तय करने वाला पड़ाव है।