Washington: रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिका ने भारत पर दबाव बढ़ा दिया है। वाशिंगटन ने न केवल भारत पर 50% टैरिफ लगाया है, बल्कि अब यूरोपीय देशों से भी भारत पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाने की अपील की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना मास्को को आर्थिक मजबूती दे रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध को “बढ़ावा” दे रहा है।
यूरोप की मिली-जुली प्रतिक्रिया
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यूरोपीय देशों को भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाना चाहिए। हालाँकि कई यूरोपीय नेता सार्वजनिक मंचों पर युद्ध समाप्त करने के ट्रंप के प्रयासों का समर्थन करते नज़र आ रहे हैं, लेकिन आंतरिक रूप से वे अलास्का में ट्रंप-पुतिन शिखर सम्मेलन में हुई प्रगति को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी अधिकारियों का आरोप है कि यूरोप एक “बेहतर सौदा” पाने के लिए यूक्रेन पर और दबाव डाल रहा है, जिससे युद्ध लंबा खिंच रहा है। यही वजह है कि व्हाइट हाउस यूरोप के रुख से नाराज़ है।
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भारत का पलटवार
भारत ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के आरोपों को दोहरा मापदंड बताया है। नई दिल्ली ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन और यूरोप दोनों ही रूस से बड़ी मात्रा में तेल और गैस का आयात कर रहे हैं, लेकिन उन पर कोई प्रतिबंध या शुल्क नहीं लगाया गया है। भारत का तर्क है कि उसकी ऊर्जा ज़रूरतें घरेलू उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था के हित में हैं और यह व्यापार अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में हो रहा है।
तिआनजिन में अहम बैठक
इन तमाम आरोप-प्रत्यारोपों के बीच, तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। अगले दो दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात होने वाली है। राजनयिक सूत्रों के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत पर अमेरिकी शुल्क इन बैठकों के सबसे बड़े मुद्दे होंगे। माना जा रहा है कि मोदी इस अवसर पर भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और ऊर्जा सुरक्षा के महत्व पर ज़ोर देंगे।
भारत-रूस संबंधों पर प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद, भारत रूस के साथ अपने ऊर्जा संबंध आसानी से नहीं तोड़ने वाला है। रूस भारत को रियायती दरों पर कच्चा तेल उपलब्ध करा रहा है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, मास्को को भारत जैसे बड़े खरीदार की भी ज़रूरत है ताकि पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच उसे आर्थिक मदद मिल सके।
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भारत के लिए कूटनीतिक संतुलन
तियानजिन सम्मेलन भारत के लिए कूटनीतिक संतुलन बनाने की एक बड़ी परीक्षा है। एक ओर उसे अमेरिका और यूरोप के साथ संबंधों को बिगड़ने से रोकना है, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन के साथ रणनीतिक और ऊर्जा सहयोग बनाए रखना भी ज़रूरी है। आने वाले दिनों में यह साफ़ हो जाएगा कि मोदी सरकार इस दबाव का सामना कैसे करती है और एससीओ शिखर सम्मेलन से कोई ठोस समाधान निकलता है या नहीं।