New Delhi: बैंक ऑफ इंडिया द्वारा नियामकीय फाइलिंग में दी गई जानकारी के अनुसार, अगस्त 2016 में रिलायंस कम्युनिकेशंस को 700 करोड़ रुपये का ऋण उसके कार्यशील पूंजी और परिचालन खर्च के लिए स्वीकृत किया गया था। लेकिन बाद में इस राशि का एक बड़ा हिस्सा लगभग आधा एक सावधि जमा (Fixed Deposit) में निवेश कर दिया गया, जो ऋण की शर्तों का उल्लंघन माना गया।
अनिल अंबानी और पूर्व निदेशकों के नाम भी शामिल
आरकॉम ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया है कि उसे 22 अगस्त को बैंक ऑफ इंडिया से 8 अगस्त 2025 को जारी एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें बैंक ने कंपनी के साथ-साथ अनिल अंबानी (पूर्व निदेशक) और मंजरी अशोक कक्कड़ (पूर्व निदेशक) के खातों को भी “धोखाधड़ी वाले ऋण खाते” के रूप में वर्गीकृत करने की जानकारी दी है।
एसबीआई पहले ही ले चुका है कार्रवाई का निर्णय
इससे पहले इसी वर्ष जून में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने भी रिलायंस कम्युनिकेशंस के ऋण खाते को धोखाधड़ी वाला घोषित किया था। बैंक ने आरोप लगाया था कि ऋण की शर्तों का उल्लंघन करते हुए कंपनी ने फंड्स का गलत इस्तेमाल किया और इससे बैंकों को भारी नुकसान हुआ। SBI की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने भी मामला दर्ज किया और जुलाई में अनिल अंबानी के निवास और रिलायंस ग्रुप से जुड़े परिसरों पर छापेमारी की थी।
CBI ने दर्ज की FIR
सीबीआई ने कहा कि उसने SBI की शिकायत पर मामला दर्ज किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रिलायंस कम्युनिकेशंस और अनिल अंबानी के नेतृत्व में कंपनी द्वारा फंड की हेराफेरी की गई, जिससे करीब 2,929.05 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में यह भी बताया गया कि ऋण का उपयोग मंजूर उद्देश्य के विपरीत किया गया, और जानबूझकर लेन-देन को छिपाया गया।
“चुनिंदा रूप से निशाना बनाया गया”
अनिल अंबानी की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में सभी आरोपों का खंडन किया गया है। प्रवक्ता ने कहा कि एसबीआई की शिकायत एक दशक पुराने मामलों से जुड़ी है। उस समय अनिल अंबानी कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे और उनका कंपनी के दैनिक प्रबंधन में कोई हस्तक्षेप नहीं था।” उन्होंने आगे कहा कि बैंक ने अन्य पांच गैर-कार्यकारी निदेशकों के खिलाफ कार्यवाही वापस ले ली थी फिर भी केवल अंबानी को निशाना बनाया जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
जाने क्या बैंकिंग नियमों को बारें में…
• उस खाते की जानकारी प्रवर्तन एजेंसियों को भेजी जाती है।
• संबंधित कंपनी या व्यक्ति को अगले 5 वर्षों तक किसी भी बैंक या वित्तीय संस्था से नया कर्ज नहीं मिल सकता।
• ऐसे मामलों में सीबीआई, ईडी या अन्य एजेंसियां स्वतः जांच शुरू कर सकती हैं।
• कंपनी की साख पर गंभीर असर पड़ता है और उसके खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया भी तेज हो सकती है।