By Saumya Singh
Source: Google
हिंदू धर्म में बांस को वंश, समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना गया है। धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग तो होता है, लेकिन इसे कभी जलाया नहीं जाता। इसके पीछे पौराणिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं।
बांस को संस्कृत में 'वंश' कहा जाता है, जिसे कुल या पीढ़ी का प्रतीक माना जाता है। इसे जलाना वंश नाश का प्रतीक माना गया है।
गरुड़ पुराण के अनुसार बांस जलाने से निकला धुआं पितृलोक तक पहुंचता है और इससे पूर्वजों की आत्मा को कष्ट होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार बांस जलाने से निकला धुआं पितृलोक तक पहुंचता है और इससे पूर्वजों की आत्मा को कष्ट होता है।
बांस से बनी चचरी का शव यात्रा में उपयोग होता है, लेकिन उसे जलाया नहीं जाता बल्कि नदी में प्रवाहित किया जाता है।
बांस के खोखलेपन और हवा से भरी गांठों के कारण जलाने पर यह फटता है और आग फैलने का खतरा बढ़ता है।
बांस का पौधा हमेशा हरा-भरा रहता है, इसलिए इसे समृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक माना गया है। इसे जलाना इन गुणों को नष्ट करने जैसा है।
विवाह, गृहप्रवेश, पूजा मंडप आदि में बांस का उपयोग होता है, लेकिन इसे कभी अग्नि को अर्पित नहीं किया जाता।
Disclaimer: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है, इसे अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।