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Valmiki Jayanti: जानिए क्यों मनाई जाती है महर्षि वाल्मीकि जयंती

आज गुरुवार को देश में रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जयंती मनायी जा रही है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Valmiki Jayanti: जानिए क्यों मनाई जाती है महर्षि वाल्मीकि जयंती

नई दिल्ली: महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) की आज गुरुवार को जयंती (Birth Anniversary) मनायी जा रही है। प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों की श्रेणी में महर्षि वाल्मीकि को उच्च स्थान प्राप्त है।

ऋषि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की थी जिसके बाद उन्हें महर्षि की उपाधि मिली थी। उन्होंने रामायण (Ramayana) संस्कृत में लिखा था। जिस चलते उन्हें संस्कृत के पहले कवि या कहें संस्कृत के आदिकवि के रूप में भी जाना जाता है। 

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार देशभर में महर्षि महर्षि वाल्मीकि को श्रद्धा और उल्लास को साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर शोभायात्राओं का भी आयोजन होता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, तप, यश , त्याग की भावनाओं को महत्व दिया गया है। इस अवसर में मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है।

 कौन थे महर्षि वाल्मीकि 
माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि (Maharshi Valmiki) का नाम रतनाकर हुआ करता था। वे डाकू थे और वन में रहकर लोगों को लूटकर परिवार का भरण-पोषण करते थे। जब उन्होंने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की तो नारद मुनि ने उन्हें शिक्षा दी जिससे उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ। इसके बाद ही वाल्मीकि तपस्या में लीन हुए।

चींटियों ने उनके शरीर पर चढ़कर बांबी बना ली जिस चलते उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया। आगे चलकर उन्होंने रामायण (Ramayana) की रचना की थी। जो हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है। 

महर्षि वाल्मीकि ज्ञान का सागर थे। महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर हुआ था। इस चलते इस साल 17 अक्टूबर यानी आज वाल्मीकि जयंती मनाई जा रही है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पहले वाल्मीकि जी डाकू थे और वन में आने वाले लोगों को लूट कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। बाद में ऋषि वाल्मीकि ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए और अपने पापों की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तप किया। वाल्मीकि अपने तप में इतने लीन थे। उन्हें इस बात का भी बोध नहीं हुआ कि उनके शरीर पर दीमक की मोटी परत जम चुकी है। जिसे देखकर ब्रह्मा जी ने रत्नाकर का नाम वाल्मीकि रखा दिया।

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