तीन शब्दों-‘फर्जी, झूठा, भ्रामक’ की सीमाएं जानने की जरूरत: अदालत ने फर्जी समाचार संबंधी आईटी नियमों पर कहा
बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करने से पहले उसे तीन शब्दों- ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ की सीमाओं को जानने की जरूरत है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
मुंबई: उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करने से पहले उसे तीन शब्दों- ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ की सीमाओं को जानने की जरूरत है।
अदालत ने सवाल किया कि क्या सरकार की किसी नीति पर राय और संपादकीय सामग्री को भी भ्रामक कहा जा सकता है? उसने सवाल किया कि किसी कानून में अपार और असीमित विवेकाधिकार देना क्या कानूनी रूप से स्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने हाल में संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके काम-काज के खिलाफ फर्जी, झूठे और भ्रामक समाचारों की पहचान करने का अधिकार है।
हास्य कलाकार कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए इन्हें मनमाना एवं असंवैधानिक बताया है। याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर ‘खतरनाक प्रभाव’ पड़ेगा।
अदालत ने कहा, ‘‘इन तीन शब्दों-फर्जी, झूठे और भ्रामक की सीमाएं क्या हैं? याचिकाकर्ताओं ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर इन नियमों का प्रभाव पड़ने का दावा किया है, लेकिन इस पर विचार करने से पहले, हमें यह (तीन शब्दों की सीमा) जानने की जरूरत है। यदि इन शब्दों को सीमाओं में बांधा जा सकता है, तो हमें इनके प्रभावों पर गौर करने की आवश्यकता नहीं है।’’
सरकार ने यह भी सवाल किया कि कौन सा काम सरकारी काम-काज है और कौन सा नहीं है।
अदालत ने कहा कि नियमों के अनुसार, जब कोई सामग्री/जानकारी फर्जी, झूठी और भ्रामक होगी तो कार्रवाई की जाएगी और प्राधिकारी को यह बताने का स्पष्ट अधिकार है कि सामग्री फर्जी है या नहीं। इस मामले में तथ्यान्वेषी इकाई (एफसीयू) को प्राधिकारी का अधिकार दिया गया है।
यह भी पढ़ें |
फर्जी खबरों के खिलाफ आईटी नियम पर हाई कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी, जानिये क्या कहा
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘एफसीयू होना ठीक है, लेकिन हम इस एफसीयू को दिए गए अधिकार को लेकर चिंतित हैं। हमें जो अत्यधिक गंभीर लगता है, वह ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ जैसे शब्द हैं।’’
अदालत ने सवाल किया कि क्या इसमें राय और संपादकीय सामग्री भी शामिल होगी?
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता या मैं यह नहीं बता सकता कि इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं। क्या किसी कानून में इस तरह अपार और असीमित विवेकाधिकार होना कानूनी रूप से स्वीकार्य है? इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं?’’
पीठ ने कहा कि नियमानुसार, एफसीयू यह तय करेगी कि पोस्ट की गई कोई सामग्री या बयान सही है या नहीं।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे इससे समस्या है। कोई आखिर यह कैसे कह सकता है कि यह झूठ है। इस अधिकार का स्रोत क्या है? एफसीयू अधिक से अधिक यह बता सकती है कि जानकारी विश्वसनीय है या नहीं। यहां तक कि कोई दीवानी अदालत भी अधिकारपूर्वक यह नहीं कह सकती कि सत्य क्या है। वह अधिक से अधिक संभावना पर टिप्पणी कर सकती है।’’
पीठ ने सवाल किया कि क्या किसी व्यक्ति की राय और संपादकीय सामग्री इन नियमों के अधीन आती है।
अदालत ने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, देश की अर्थव्यवस्था संबंधी सरकारी आंकड़ों को लेकर आलोचना। ये आंकड़े सरकारी स्रोतों से प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन इनका विश्लेषण अलग-अलग हो सकता है। क्या इससे यह (विश्लेषण) झूठी, फर्जी और भ्रामक सूचना हो जाती है?’’
यह भी पढ़ें |
केंद्र के नये आईटी नियम को लेकर हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, जानिये क्या कहा
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘किसी को कोई संपादकीय बहुत कटु आलोचना लग सकता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह झूठा, फर्जी या भ्रामक है।’’
पीठ ने कहा कि वह मामले पर आगे 13 जुलाई को सुनवाई करेगी।
केंद्र सरकार ने इससे पहले अदालत को आश्वस्त किया था कि वह 10 जुलाई तक तथ्यान्वेषी इकाई को अधिसूचित नहीं करेगी।
पीठ ने शुक्रवार को कहा कि इस बयान के लागू होने की अवधि को 14 जुलाई तक बढ़ाया जाता है।
केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी, जिनमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या गुमराह करने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल है।
इन तीन याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित कर दे और सरकार को इन नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई न करने का निर्देश दे।