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Mumbai: बंबई उच्च न्यायालय का फैसला, मुकदमा लंबित होने पर आरोपी को अनिश्चित काल तक कैद में नहीं रखा जा सकता

बंबई उच्च न्यायालय ने दोहरा हत्याकांड के एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को मुकदमे के लंबित रहने की वजह से अनिश्चित काल तक कैद में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Mumbai: बंबई उच्च न्यायालय का फैसला, मुकदमा लंबित होने पर आरोपी को अनिश्चित काल तक कैद में नहीं रखा जा सकता

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने दोहरा हत्याकांड के एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को मुकदमे के लंबित रहने की वजह से अनिश्चित काल तक कैद में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने मामले के आरोपी आकाश सतीश चंडालिया को 26 सितंबर को जमानत दे दी। पुणे जिले की लोनावाला पुलिस ने चंडालिया को दोहरे हत्याकांड और साजिश के आरोप में सितंबर 2015 में गिरफ्तार किया था।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी पर लगे आरोपों की गंभीरता और मुकदमे के समापन में लगने वाले लंबे समय के बीच संतुलन बनाना होगा।

एकल पीठ ने कहा, ‘‘किसी अपराध की गंभीरता और उसकी जघन्य प्रकृति एक पहलू हो सकती है, जो किसी आरोपी को जमानत पर रिहा करने के विवेक का प्रयोग करते समय विचार करने योग्य है, लेकिन साथ ही, एक आरोपी को विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे समय तक जेल में रखने के तथ्य को भी उचित महत्व दिया जाना चाहिए।’’

अदालत ने आगे कहा कि मुकदमे के लंबित रहने के कारण किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है और यह स्पष्ट रूप से संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, और समय-समय पर किसी आरोपी को रिहा करने के विवेक का इस्तेमाल करने के लिए एक न्यायसंगत आधार माना जाता है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मुकदमे को समयबद्ध तरीके से समाप्त करने के निर्देश जारी किए जाने के बावजूद, इसका कोई नतीजा नहीं निकला है और ऐसी परिस्थितियों में, आरोपी को जमानत पर रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि त्वरित सुनवाई सुनिश्चित किए बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है।

आदेश में कहा गया है कि यदि कोई आरोपी पहले ही प्रस्तावित सजा की महत्वपूर्ण अवधि काट चुका है तो अदालत आम तौर पर उस पर लगे आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य होगी।

चंडालिया की वकील सना रईस खान ने दलील दी कि उनके मुवक्किल लगभग आठ साल से जेल में बंद हैं और मुकदमा अभी तक खत्म नहीं हुआ है। खान ने अदालत में कहा, ''शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित किए बिना अनिश्चित काल के लिए कैद में रखना सुनवाई से पहले सजा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है और यह उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।''

पीठ ने कहा कि चंडालिया पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत आरोप है और जिस तरह से कथित अपराध हुआ है वह निर्विवाद रूप से गंभीर प्रकृति का है।

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