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BLOG: भीषण गर्मी, बारिश की मार और बाढ़ के प्रकोप के लिये मनुष्य खुद जिम्मेदार; बढ़ाएं एक कदम प्रकृति की ओर..

मैं प्रकृति का अंश हूँ, मेरा नाम वृक्ष है | वैसे आप मनुष्य अपनी इच्छानुसार मुझे पेड़-पौधे के नाम से भी पुकारने के लिये स्वतंत्र है | सदियों से मानव-जाति के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध हूँ, लेकिन आप लोगों की क्रूरता ने आज मुझे स्वयं के भीतर उत्पन्न हुये आक्रोश को प्रगट करने के लिये विवश कर दिया है |
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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BLOG: भीषण गर्मी, बारिश की मार और बाढ़ के प्रकोप के लिये मनुष्य खुद जिम्मेदार; बढ़ाएं एक कदम प्रकृति की ओर..

नई दिल्ली: ऋतुओं (मौसम) के समयचक्र में बदलाव, भीषण गर्मी की मार, वर्षा का अभाव, सर्दियों का आगमन से पूर्व चले जाना, इतना ही नहीं पक्षियों की विलुप्त होती प्रजातियों और प्राकृतिक आपदाओं (आँधी, तूफान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकंप, बढ़ता तापमान, गिरता जल-स्तर) के लिये आप मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है।

निर्दयता से हमें काटा जाता

प्रगति और विकास की दौड़ में विश्व पटल पर भारत ने अपना नाम अवश्य अंकित करवा लिया, किन्तु पर्यावरण के संरक्षण के लिये जागरूकता के नाम पर “पर्यावरण दिवस तथा वृक्षारोपण अभियान” जैसे एक दिवसीय कार्यकर्मों के माध्यमों से आप मनुष्य मात्र समाचार-पत्रों और समाचार-चैनलों की सुर्खियाँ बनने को आतुर हैं। कभी जलाने के लिये और कभी धन कमाने के लिये निर्दयता से हमें काटा जाता है। 

सोने के अंडे देने वाली मुर्गी

जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन वृक्षों की संख्या घट रही है। “सोने के अंडे देने वाली मुर्गी” की कहानी आप सबने दादी-नानी से सुनी होगी , जब मुर्गी ही काट ली गई, तब फिर अंडे कहाँ से मिलेंगे ? 

पर्यावरण का संरक्षण?

उसी प्रकार यदि आप लोग हम पेड़-पौधों को काट देंगे तब फिर शुद्ध शीतल हवा, धूप और वर्षा से बचने के लिये छाया, असाध्य बिमारियों के लिये दुर्लभ औषधियां, पशु-पक्षियों के लिये आसरा और पर्यावरण का संरक्षण कहाँ से तथा कैसे होगा ?

कागज, कलम, पेन्सिल, फर्नीचर

हमें बचाइए, हमारा संरक्षण और संवर्धन कीजिये। आप हमें कागज, कलम, पेन्सिल, फर्नीचर और अनेक आवश्यक वस्तुओं के लिये काटते है। लेकिन यदि “ईंधन के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, उज्जला योजना के रूप में गैस का विकल्प देकर हमें बचाने में अहम् भूमिका निभा रहे है, तब फिर आप लोग क्यों नहीं कुछ प्रयास करते हैं”?

अखबार और रद्दी

आप और आपके बच्चे पढ़ने लिखने के लिये कागज, कलम, पेन्सिल, बैग आदि का प्रयोग करते है और प्रतिदिन असंख्य वृक्षों को कटने पर विवश कर देते है। जबकि आपके पास हमारे पूर्वजों द्वारा दिये गये विकल्प उपलब्ध है। किस सोच में पड़ गये? मैं अखबार और रद्दी की बात कर रहा हूँ, जिसे आप कबाड़ी वाले को बेचकर, घर को अनावश्यक कबाड़ से मुक्त करके खुश हो जाते है।

आप नये पौधे भी लगा रहे है…

अब आप सोच रहे है कि फिर क्या करें? मैं आपकी सहायता करता हूँ, क्योकि इससे कम से कम हम (वृक्षों) आपके सहयोग से स्वयं की रक्षा कर सकेंगे। इतना ही नहीं आपको भी पर्यावरण की रक्षा, सुरक्षा तथा संरक्षण करने का अवसर मिलेगा। पुराने अखबार कबाड़ी वाले को बेचने की अपेक्षा एकत्रित कीजिये और उस संस्थान को दीजिये, जिन्होंने  रद्दी अख़बार से पेन्सिल, पैन, कागज, बैग आदि बनाने का उद्यम आरम्भ किया है। ऐसा करके आप केवल पेड़ कटने से ही नहीं बचा रहे है, अपितु नये पौधे भी लगा रहे है।

राष्ट्र और मानवता

अख़बार से निर्मित पेन्सिल कागज, बैग आदि के नीचे अलग-अलग सब्जी और फलों के बीज है। जब पेन्सिल लिखने हेतु पकड़ने की स्थिति में नहीं रहे तब आप उसे किसी गमले में रोप दीजिये, कुछ ही दिनों में नवीन पौधा उग जायेगा इस प्रकार आप केवल वृक्ष कटने से ही नहीं बचा रहे है, अपितु वृक्ष लगा भी रहे है | आइये इस अभियान में हम सभी सम्मिलित होकर राष्ट्र और मानवता के लिये अपना योगदान दे एवं आने वाली पीढ़ी के लिये स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण की विरासत सुनिश्चित करें। एक वृक्ष केवल फ़ोटो के लिए नहीं, उसे पालने के लिए लगाएं।

(लेखिका प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास, फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। डॉ. व्यास संपादक, शिक्षिका, कवियत्री और लेखिका होने के साथ-साथ समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है। ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं)

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