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मृत्युपर्यंत कैद की सजा केवल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय सुना सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दोषी व्यक्ति की मृत्युपर्यंत कैद की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया, जिससे 14 साल जेल में रहने के बाद उसकी रिहाई हो सकेगी।
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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मृत्युपर्यंत कैद की सजा केवल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय सुना सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय

बेंगलुरु: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दोषी व्यक्ति की मृत्युपर्यंत कैद की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया, जिससे 14 साल जेल में रहने के बाद उसकी रिहाई हो सकेगी।

दोषी की अपील पर उच्च न्यायालय ने अपने हालिया फैसले में कहा कि इस तरह की विशेष श्रेणी की सजा केवल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ही सुना सकता है, ना कि निचली अदालत। उच्च न्यायालय ने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने भारत संघ बनाम वी श्रीहरण उर्फ मुरुगन व अन्य मामले में अपने फैसले में भी ऐसी टिप्पणी की थी।

हरीश और लेाकेश नाम के दो व्यक्तियों ने उच्च न्यायालय में दो अपील दायर की थी। वे डी आर कुमार नामक एक व्यक्ति की हत्या के मामले में क्रमश: प्रथम और तीसरे आरोपी हैं।

हरीश का कुमार की पत्नी राधा से प्रेम संबंध था, और यह कुमार की हत्या की वजह बना। जब कुमार 16 फरवरी 2012 को हासन जिला स्थित चोल्लेमारदा गांव में एक खेत में काम कर रहा था, तभी हरीश ने एक सरिया से उसके सिर पर प्रहार किया और उसकी हत्या कर दी।

बाद में, हरीश ने अपने भाई लोकेश की मदद से उसके शव को ठिकाने लगा दिया।

हरीश, राधा और लोकेश पर मुकदमा चला और हासन की एक सत्र अदालत ने 25 अप्रैल 2017 को उन्हें दोषी करार दिया।

हरीश को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत मृत्युपर्यंत कैद की सजा सुनाई गई। उसे आईपीसी की धारा 120 (बी) और 201 के तहत भी सजा सुनाई गई। साथ ही, उसे कुमार के दो बच्चों को तीन लाख रुपये अदा करने का आदेश भी दिया गया।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति के. सोमशेखर और न्यायमूर्ति राजेश राय के. की पीठ ने हरीश की दोषसिद्धि को कायम रखा, लेकिन कहा कि निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा सही नहीं है।

इसने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत संघ बनाम वी श्रीहरण उर्फ मुरुगन व अन्य के मामले में दी गई व्यवस्था के आलोक में यह सजा कानून पर खरा नहीं उतरती है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस तरह के मामलों में तीन मानदंड तय किये थे जिनमें अपराध की पड़ताल, आपराधिक पड़ताल और दुर्लभतम मामला होने की पड़ताल शामिल हैं।

हरीश की जमानत और मुचलका रद्द कर दिया गया तथा उसे अपनी सजा काटने के लिए निचली अदालत के समक्ष दो हफ्तों में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया।

 

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