चीन की आबादी में असमानता, भारत के पास दुनिया का सर्वाधिक कार्यबल, पढ़िये ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के ताजा आंकड़ों के अनुसार 142.86 करोड़ आबादी के साथ भारत जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का पहले नंबर का देश बन गया है और इसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

भारत जनसंख्या
भारत जनसंख्या


नयी दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के ताजा आंकड़ों के अनुसार 142.86 करोड़ आबादी के साथ भारत जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का पहले नंबर का देश बन गया है और इसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इसके मायने क्या हैं और आगे चलकर यह समाज को कैसे प्रभावित करेगा, इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर जनसांख्यिकी विशेषज्ञ और इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के प्रोफेसर डॉ. उदय शंकर मिश्रा से पांच सवाल और उनके जवाब:-

सवाल: भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। आपकी पहली प्रतिक्रिया?

जवाब: मेरी पहली प्रतिक्रिया यही है कि जनसांख्यिकीय समुदाय के लिए यह कोई खबर नहीं है। तथ्य यह है कि भारत में आबादी में वृद्धि की रफ्तार चीन की तुलना में बहुत धीमी रही है। धीमी ही नहीं, यह बहुत स्वस्थकर भी रही है। जिस गति से भारत ने जनसांख्यिकीय परिवर्तन किया है, वह विशेष है और यह गति हमें एक लाभ देती है। आने वाले कुछ वर्षों में वैश्विक कार्यबल में 22 प्रतिशत भारतीयों के होने का अनुमान है। दूसरी बात यह है कि भारत की आंतरिक जनसांख्यिकीय विविधता भी हमें कार्यबल संरचना असंतुलन से निपटने का अवसर प्रदान करेगी।

सवाल: तो क्या सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होने को आप वरदान मानते हैं?

जवाब: यह वरदान है या अभिशाप, मैं इस युग्मक में नहीं पड़ता। इससे सोचने की प्रक्रिया को चोट पहुंचती है। वास्तविकता है कि हम सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं और यह आबादी हमारी विभिन्न प्रतिकूलताओं में योगदान भी करती है, जिनका हम सामना करते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हम अपनी भावी आबादी को अपनी ताकत नहीं बना सकते, उसे उपयोगी नहीं बना सकते। इसके लिए सार्थक प्रयास करने होंगे। मैंने पहले भी कहा कि 2041 तक वैश्विक कार्यबल में 22 प्रतिशत भारतीयों के होने का अनुमान है। इसे हम अपने हित में उपयोग कर सकते हैं।

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सवाल: लेकिन चीन ने तो जनसंख्या नियंत्रण भी किया और वह अपने कार्यबल का उपयोग भी कर रहा है?

जवाब: निश्चित तौर पर चीन ने जनसंख्या नियंत्रण किया लेकिन इसके लिए उसने जबरदस्ती वाले उपाय अपनाए। उसने केवल एक बच्चे की नीति अपनाई और फिर बाद में ज्यादा उम्र में शादी करने और बच्चों के बीच फासला रखने की नीति अपनाई। इन वजहों से उसने जनसंख्या पर फिलहाल रोक लगाई है। चीन में प्रजनन दर में भी काफी गिरावट देखी गई है। इन नीतियों की वजह से उसकी जनसंख्या में असमानता भी आई है। उसकी 25 प्रतिशत आबादी अधिक उम्र के लोगों की है जबकि हमारे यहां यह आंकड़ा 12 प्रतिशत है। जाहिर है कि आबादी में वृद्धि की धीमी दर हमारे लिए फायदेमंद है। यह गति हमें भविष्य में उभरने वाली चिंताओं को समायोजित करने के लिए तंत्र विकसित करने की तैयारी के लिए समय देती है।

सवाल: चीन का कहना है कि उसके पास अब भी 90 करोड़ से अधिक लोगों का गुणवत्ता वाला मानव संसाधन है जो तेज गति से विकास कर सकता है?

जवाब: चीन की स्थिति वास्तव में वर्तमान समय में पूरी तरह से सही है क्योंकि वह चाहे कौशल हो या शिक्षा हो या फिर विनिर्माण में भागीदारी, वे हर मानदंड में भारतीय श्रम बल की तुलना में लाभ की स्थिति में हैं। लेकिन इस विशेष गणना और विवरण में एक बात यह है कि बहुत जल्द उनके पास एक बुजुर्ग आबादी होगी जो कार्यबल में नहीं होगी। इसलिए स्पष्ट रूप से इसे उनके पक्ष में नहीं माना जाएगा। अभी यह उनके पक्ष में है लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रहने वाली स्थिति है।

 

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सवाल: इन सबके बावजूद हमारी बढ़ती जनसंख्या एक चिंता का कारण है और क्या आपको नहीं लगता कि भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई ठोस कानून हो?

जवाब: वास्तव में जनसंख्या वृद्धि को रोकना केवल जनसंख्या के बढ़ते आकार में ही नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि यदि आप जनसंख्या वृद्धि रोकने की बात कर रहे हैं तो यह हम पहले से ही कर रहे हैं। नई पीढ़ी के लोग कम संतान पैदा कर रहे हैं। कुछ समय बाद जनसंख्या स्थिर होगी। स्थिर होने का अर्थ है कि इसकी वृद्धि दर स्थिर रहेगी। यह निर्भर करता है कि हम इस स्थिर रहने की अवधि को कितना लंबा कर सकते हैं। प्रजनन दर और मृत्यु दर पर भी यह निर्भर करेगा।

 










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