Health & Fitness: जानिये ‘बायपोलर डिसऑर्डर' को रोकने के खास उपाय, अवसाद रोधी उपचार से मिलेगी ये मदद
अवसाद रोधी आधुनिक उपचार जारी रखकर मरीजों में ‘बायपोलर डिसऑर्डर’ की वापसी को रोका जा सकता है। कनाडा स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया’ के अनुसंधानकर्तओं के नेतृत्व वाले एक अंतरराष्ट्रीय क्लीनिकल अध्ययन के परिणाम से यह जानकारी मिली है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: अवसाद रोधी आधुनिक उपचार जारी रखकर मरीजों में ‘बायपोलर डिसऑर्डर’ की वापसी को रोका जा सकता है। कनाडा स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया’ के अनुसंधानकर्तओं के नेतृत्व वाले एक अंतरराष्ट्रीय क्लीनिकल अध्ययन के परिणाम से यह जानकारी मिली है।
‘बायपोलर डिसऑर्डर’से ग्रस्त मरीज की भावनात्मक स्थिति और मिजाज में बदलाव आते हैं। वह कभी बहुत ऊर्जावान एवं खुश महसूस करता है और कभी अवसाद में रहता है। मरीजों को इससे निपटने के लिए अवसाद रोधी दवाओं के साथ-साथ मिजाज को स्थिर बनाने वाली और/या मनोविकार रोधी दवाएं दी जाती हैं।
‘बायपोलर डिसऑर्डर’ के मरीज में अवसाद की स्थिति समाप्त हो जाने के बाद उसे अवसाद रोधी दवाएं दिए जाने की अवधि बहस का विषय है। ये दवाएं मरीज को फिर से अवसाद की स्थिति में जाने से रोकने में मदद करती हैं। इस विषय पर बहस का कारण यह आशंका है कि अवसाद रोधी दवाएं मरीज के ऊर्जावान रहने की स्थिति में हालात बिगाड़ सकती है और इनके कारण अत्यंत ऊर्जावान एवं फिर अवसाद महसूस करने की चरम भावनात्मक स्थितियों के चक्र में तेजी आ सकती है।
कनाडाई दिशा-निर्देशों के अनुसार, अवसाद की स्थिति समाप्त हो जाने के बाद अवसाद रोधी दवाएं आठ सप्ताह तक देने की सिफरिश की जाती है, लेकिन भारतीय मनोरोग सोसाइटी इस बारे में किसी स्पष्ट अवधि की सलाह नहीं देती।
यह भी पढ़ें |
Corona Update: धीरे-धीरे एक बार फिर बढ़ते कोरोना के मामले
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया’ के अनुंसधान के परिणाम मौजूदा दिशानिर्देशों से अधिक समय तक दवाएं देने की सिफारिश करते हैं। ये परिणाम ‘बायपोलर डिसऑर्डर’ के उपचार के तरीके में वैश्विक स्तर पर बदलाव ला सकते हैं। इन परिणाम को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है और इस संबंधी परीक्षण कनाडाई, दक्षिण कोरियाई और भारतीय स्थलों पर किए गए।
अध्ययन की प्रमुख लेखक और विश्वविद्यालय में मनोरोग चिकित्सा विभाग की प्रमुख लक्ष्मी याथम ने कहा, ‘‘कुछ अध्ययनों से पता चला है कि 80 प्रतिशत मरीजों ने छह महीने या उससे भी अधिक समय तक अवसाद रोधी दवाएं लेना जारी रखा।’’
अध्ययन में ‘बायपोलर डिसऑर्डर’ के ऐसे 178 मरीजों को शामिल किया गया था, जो अवसादरोधी आधुनिक दवाओं से उपचार के बाद अवसाद की स्थिति से उबर रहे थे। उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार या तो 52 सप्ताह तक अवसादरोधी उपचार जारी रखने या छह सप्ताह में दवाएं धीरे-धीरे लेना बंद करने और आठ सप्ताह में ‘प्लेसिबो’ (भ्रामक उपचार पद्धति) अपनाने को कहा गया।
सालभर के अध्ययन के अंत में प्लेसिबो समूह वाले 46 प्रतिशत मरीजों के मिजाज में बदलाव देखा गया जबकि अवसादरोधी दवाएं लेना जारी रखने वाले केवल 31 प्रतिशत मरीजों में ही ऐसा पाया गया।
यह भी पढ़ें |
देश में कोविड-19 के मामलों में सर्वाधिक वृद्धि, जानिये कितने नए केस आये सामने
अध्ययन में उन मरीजों में अवसाद की स्थिति पैदा होने की समस्या 40 प्रतिशत तक कम पाई गई, जिन्होंने अवसादरोधी दवाएं लंबी अवधि तक लीं।
अवसाद की स्थिति में मरीज उदासी, हताशा, गतिविधियों में अरुचि, नींद संबंधी समस्या, भूख में बदलाव और आत्महत्या करने के विचारों से जूझता है। ऊर्जावान महसूस करने वाली स्थिति की तुलना में इस स्थिति में मरीजों के आत्महत्या करने या इसकी कोशिश करने की आशंका कम से कम 18 गुणा अधिक होती है।