संयुक्त राष्ट्र की पुरानी प्रणाली में सुधार को लेकर विदेश मंत्री का बड़ा बयान, जानिये क्या कहा

डीएन ब्यूरो

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों का विरोध कर रहे देशों पर निशाना साधते हुए कहा कि पुरानी प्रणाली के लाभार्थी इन बदलावों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे विशेषाधिकार की उनकी स्थिति ‘‘कमजोर’’ हो जाएगी। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

विदेश मंत्री एस जयशंकर  (फाइल फोटो)
विदेश मंत्री एस जयशंकर (फाइल फोटो)


स्टॉकहोम: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों का विरोध कर रहे देशों पर निशाना साधते हुए कहा कि पुरानी प्रणाली के लाभार्थी इन बदलावों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे विशेषाधिकार की उनकी स्थिति ‘‘कमजोर’’ हो जाएगी।

जयशंकर स्वीडन के तीन दिवसीय दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने स्वीडन में भारतीय समुदाय के साथ बातचीत की और यूरोपीय संघ (ईयू) एवं हिंद-प्रशांत मंत्रिस्तरीय मंच (ईआईपीएमएफ) के लिए स्टॉकहोम की अपनी यात्रा के दौरान भारत में जारी बदलावों को रेखांकित किया।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें भारत के सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने की कोई संभावना नजर आती है, जयशंकर ने कहा कि हर गुजरते साल के साथ संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो रहे हैं और इसकी बेहतरी के लिए इसमें सुधार होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र को 1940 के दशक में बनाया गया था। उस समय भारत चार्टर का मूल हस्ताक्षरकर्ता था, लेकिन तब वह एक स्वतंत्र देश नहीं था और उस समय पांच देशों ने एक तरह से खुद ही स्वयं को चुन लिया था। ये पांच देश आज भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं।’’

रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं और उनके पास वीटो का अधिकार है। इसके अलावा दो साल के कार्यकाल के लिए 10 अस्थायी सदस्यों का चयन किया जाता है। भारत का अस्थायी सदस्य के रूप में कार्यकाल पिछले साल दिसंबर में पूरा हुआ था। भारत सुरक्षा परिषद में सुधारों की लंबे समय से मांग करता रहा है।

जयशंकर ने कहा, ‘‘अब हर संस्थान की तरह इसकी (सुरक्षा परिषद की) भी आज यह समस्या है कि पहले से लाभ ले रहे देश बदलाव नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे विशेषाधिकार की उनकी स्थिति कुछ हद तक कमजोर हो जाएगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि समझदार देश कहेंगे कि ठीक है, दुनिया बदल रही है। मुझे भी इसके साथ बदलना चाहिए।’’

जयशंकर ने कहा कि सुधार प्रक्रिया के दौरान कुछ देश कहेंगे कि भारत जैसे देश का सुरक्षा परिषद में होना उनके लिए लाभकारी होगा और कुछ अन्य देश होंगे जो सार्वजनिक रूप से तो देश का विरोध नहीं करेंगे, लेकिन अपने कार्यों एवं नीतियों से यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि यथास्थिति बनी रहे।

उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी संगठन में सुधार करना मुश्किल काम है, जिसमें 190 से अधिक देश सदस्य हों। उन्होंने कहा कि कोई भी अफ्रीकी या लातिन अमेरिकी देश स्थायी सदस्य नहीं है, इसलिए परिषद में सुधार की आवश्यकता है।

जयशंकर ने कहा, ‘‘आप जानते हैं कि सुधार चाहने वालों और अवरोध पैदा करने वालों के बीच एक तरह का झगड़ा होगा, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है और मैंने देखा है कि प्रत्येक बीतते साल के साथ सुधार की मांग मजबूत होती जा रही है। मैं यह नहीं बता सकता कि यह कब होगा, लेकिन मैं कह सकता हूं कि सुई उस दिशा में घूम रही है।’’

उन्होंने दुनिया के सामने मौजूद भूराजनीतिक चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि यूक्रेन का संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण घटना है, जिसका दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग प्रभाव पड़ा है।

उन्होंने उत्पादन के किसी एक जगह पर केंद्रित होने के जोखिम पर भी चर्चा की। जयशंकर ने प्रौद्योगिकी के बारे में कहा कि नयी प्रौद्योगिकी वास्तव में बहुत अहम है।

यह पूछे जाने पर कि भारत देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ व्यापार को संतुलित कैसे करेगा, जयशंकर ने कहा कि अब भारत सरकार का ध्यान विनिर्माण को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी और यूक्रेन संकट के कारण पैदा हुई बाधा की वजह से दुनिया में यह समझ पैदा हुई है कि उत्पादन के और स्रोत होने चाहिए।

भारत के अपने निवल शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को लेकर कम महत्वाकांक्षी होने के सवाल पर, विदेश मंत्री ने कहा कि प्रति व्यक्ति 2,000 डॉलर की आय वाले समाज से प्रतिबद्धता जताने के लिए कहना भी बड़ी बात है।

उन्होंने भारत से साढ़े चार गुना अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले चीन से तुलना करते हुए कहा, ‘‘आप भारत और भारत के विकास पथ की तुलना उन देशों से नहीं कर सकते, जिनकी भारत की तुलना में पांच गुना या 10 गुना या 20 गुना प्रति व्यक्ति आय है।’’

जयशंकर यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत मंत्रिस्तरीय मंच (ईआईपीएमएफ) में शामिल होने के लिए स्वीडन के तीन दिवसीय दौरे पर हैं।

विदेश मंत्री ने रविवार शाम को ट्वीट किया, ‘‘स्वीडन में भारतीय समुदाय के साथ बातचीत करके खुशी हुई। हम अपने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, ऐसे में मैंने उन्हें हमारे द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में हुई प्रगति से अवगत कराया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘स्वीडन का ईयू के सदस्य, एक नॉर्डिक साझेदार और एक साथी बहुपक्षवादी देश के रूप में महत्व है। हमने भारत में जारी उन बदलावों के बारे में बात की, जो हमारी वैश्विक उपस्थिति को बढ़ाते हैं और विदेशों में भारतीयों के लिए अवसर पैदा करते हैं।’’

इससे पहले जयशंकर ने स्वीडन के अपने समकक्ष टोबियास बिलस्ट्रॉम के साथ रविवार को यहां व्यापक चर्चा की। इस दौरान हिंद-प्रशांत, यूरोप की सामरिक स्थिति तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को जोखिम मुक्त करने पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।










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