अदालत ने किशोरी के यौन उत्पीड़न के लिए व्यक्ति को 12 साल कठोर कारावास की सजा सुनायी

डीएन ब्यूरो

दिल्ली की एक अदालत ने एक किशोरी के यौन उत्पीड़न के लिए एक 32 वर्षीय व्यक्ति को पोक्सो अधिनियम के तहत 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

यौन उत्पीड़न के लिए व्यक्ति को 12 साल  कठोर कारावास  की सजा
यौन उत्पीड़न के लिए व्यक्ति को 12 साल कठोर कारावास की सजा


नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने एक किशोरी के यौन उत्पीड़न के लिए एक 32 वर्षीय व्यक्ति को पोक्सो अधिनियम के तहत 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।

अदालत ने कहा कि ‘‘विकृत दिमाग’’ के साथ बच्चों के खिलाफ यौन अपराध में लिप्त दोषी नरमी का पात्र नहीं है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील बी. डागर, एम नरशिमा (अदालत के रिकॉर्ड में दर्ज नाम) के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसके खिलाफ दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोपपत्र दायर किया है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, नरशिमा ने नौ जुलाई, 2016 को और कई अज्ञात पूर्व तारीखों पर 16 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न किया, इसके अलावा उसने पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों को जान से मारने की धमकी भी दी।

एएसजे डागर ने चार अक्टूबर के फैसले में कहा, ‘‘जिस दोषी को बच्चों के साथ यौन अपराध में लिप्त पाया गया है, वह किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अपराध की गंभीरता, पीड़ित बच्ची और दोषी की उम्र, दोषी और पीड़ित बच्चे की पारिवारिक स्थिति और उन्हें नियंत्रित करने वाले सामाजिक और आर्थिक कारकों सहित गंभीर परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, दोषी को पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई जाती है।’’

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 6 यौन हमले के लिए सजा से संबंधित है।

अदालत ने व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के तहत अपराध के लिए पांच साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई। हालांकि, अदालत ने कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी।

अदालत ने दोषी की इस दलील को खारिज कर दिया कि वह मानसिक बीमारियों से पीड़ित है। नरशिमा की मेडिकल रिपोर्ट पर गौर करते हुए अदालत ने कहा, 'दोषी कानूनी तौर पर और साथ ही चिकित्सकीय रूप से स्वस्थ और मुकदमा चलाने के लिए फिट पाया गया है।’’

अदालत ने कहा कि यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों की देखभाल करे और उन्हें यौन शोषण करने वालों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शोषण से बचाए।










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