ईडी की कार्रवाई के बाद सरकारी बैंकों को 15,000 करोड़ रुपये वापस मिले: सीतारमण

डीएन ब्यूरो

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धनशोधन रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई करते हुए 15,186.64 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है तथा इनमें से लगभग सभी राशि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वापस लौटा दी गई है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण


नयी दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धनशोधन रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई करते हुए 15,186.64 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है तथा इनमें से लगभग सभी राशि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वापस लौटा दी गई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार वित्त मंत्री ने उच्च सदन में प्रश्नकाल के दौरान पूरक सवालों के जवाब देते हुए यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ऋणों का भुगतान नहीं करने वालों, खासकर जानबूझकर कर ऐसा करने वालों, के खिलाफ विभिन्न कानूनी प्रावधानों के जरिए कार्रवाई की जा रही है और उसके फलस्वरूप, 'बड़ी मात्रा में धनराशि' बैंकों को वापस मिल रही है।

सीतारमण ने कहा कि 31 मार्च, 2023 तक 13,978 ऋण खातों के खिलाफ वसूली के लिए कानूनी मुकदमे दायर किए गए जबकि 11,483 मामलों में ‘सरफेसी’ कानून के तहत कार्रवाई शुरू की गई है, वहीं 5,674 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है और कुल 33,801 करोड़ रुपये की वसूली हुई है।

वित्त मंत्री ने कहा, 'एक दिसंबर, 2023 तक, धनशोधन कानून के तहत 15,186.64 करोड़ रुपये की संपत्ति ईडी ने जब्त की है, जिसमें से 15,183.77 करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वापस कर दिए गए हैं।'

इस दौरान उच्च सदन के सभापति जगदीप धनखड़ ने उनसे ‘फोन बैंकिंग’ का अर्थ बताने के लिए कहा। वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने एक पूरक सवाल का जवाब देते हुए ‘फोन बैंकिंग’ शब्द का उल्लेख किया था।

वित्त मंत्री सीतारमण ने ‘फोन बैंकिंग’ का जिक्र करते हुए कहा कि 'फोन बैंकिंग' वह तरीका है जिसके जरिए (2004-2014 के दौरान संप्रग शासनकाल में) 'राजनीतिक हस्तक्षेप ने हमारे सभी बैंकों की स्थिति को खराब कर दिया और उन्हें घाटे में ला दिया'।

उन्होंने कहा, ‘‘उस समय 'फोन बैंकिंग' के तहत लोग बैंकों को फोन करते थे और कहते थे कि अमुक व्यक्ति आपके बैंक से ऋण लेने आएगा, कृपया उसे दे दें। उसका अर्थ है कि उनकी पात्रता आदि पर गौर करने की कोई आवश्यकता नहीं है तथा ऋण अवश्य दिया जाना चाहिए।'

सीतारमण ने कहा कि समस्या की जड़ 2004 से 2014 के बीच संप्रग शासनकाल के दौरान थी जब ऐसे लोगों को ऋण देने के लिए कहा गया जो पात्र नहीं थे। उन्होंने कहा, 'भारतीय बैंकों की समस्याओं को सुलझाने का बोझ हम पर आ गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेरे पूर्ववर्ती अरुण जेटली (पूर्व वित्त मंत्री) सहित विभिन्न लोगों के साथ बैठे। हमें यह समझने में काफी समय लग गया कि समस्या कहां है और हमने आरबीआई के साथ मिलकर काम किया।'

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और उसने पिछली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत दर्ज की।

वित्त मंत्रालय के अनुसार पिछले दो वित्त वर्ष में, वाणिज्यिक बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनएपी) खातों की संख्या 2.19 करोड़ से घटकर 2.06 करोड़ हो गई है, जो 6.2 प्रतिशत की कमी स्पष्ट करती है। इसी प्रकार, इस अवधि के दौरान ऐसे खातों का कुल बकाया (सकल एनपीए) 7.41 लाख करोड़ रुपये से घटकर 5.72 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो 22.9 प्रतिशत की गिरावट दिखाता है।

वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि सभी वाणिज्यिक बैंकों के लिए शुद्ध एनपीए अनुपात 2017-18 में 5.94 प्रतिशत था जो 2022-23 में घटकर 0.95 प्रतिशत रह गया है। राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों के मामले में, शुद्ध एनपीए 2017-18 में 5.94 प्रतिशत था जो अब 1.24 प्रतिशत रह गया है।










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