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मिजोरम में शरणार्थियों की डिजिटल पहचान की पहल, जुलाई के अंत से शुरू होगा रजिस्ट्रेशन

 मिजोरम की हरी-भरी पहाड़ियों में बीते कुछ वर्षों से एक अनकही कहानी पल रही है। एक ऐसी कहानी जो मानवीय करुणा, सांस्कृतिक अपनापन और अब तकनीकी प्रबंधन के संगम की है। म्यांमार, बांग्लादेश और मणिपुर से आए हज़ारों शरणार्थियों के लिए मिजोरम सिर्फ एक सुरक्षित ठिकाना नहीं, बल्कि एक "अपनों का घर" बन चुका है।
Post Published By: Poonam Rajput
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मिजोरम में शरणार्थियों की डिजिटल पहचान की पहल, जुलाई के अंत से शुरू होगा रजिस्ट्रेशन

New Delhi: मिजोरम की हरी-भरी पहाड़ियों में बीते कुछ वर्षों से एक अनकही कहानी पल रही है। एक ऐसी कहानी जो मानवीय करुणा, सांस्कृतिक अपनापन और अब तकनीकी प्रबंधन के संगम की है। म्यांमार, बांग्लादेश और मणिपुर से आए हज़ारों शरणार्थियों के लिए मिजोरम सिर्फ एक सुरक्षित ठिकाना नहीं, बल्कि एक “अपनों का घर” बन चुका है।

सूत्रों के अनुसार, मिजोरम की ज़मीन पर ये लोग किसी बाहरी की तरह नहीं, बल्कि अपने जातीय रिश्तों के सहारे अपनेपन के साथ रह रहे हैं। म्यांमार के चिन, बांग्लादेश के बवम और मणिपुर के जो समुदाय, सभी मिजो जनजातियों से गहरे सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं। इसी कारण, राज्य ने इन्हें सिर्फ शरण नहीं दी, बल्कि सम्मान और सहारा भी दिया।

अब यह सांस्कृतिक अपनापन एक नई दिशा ले रहा है तकनीकी पहचान की। राज्य सरकार जल्द ही इन शरणार्थियों का बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय पंजीकरण शुरू करने जा रही है। यह न सिर्फ प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ाने का कदम है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि इन लोगों को उनके अधिकार, सेवाएं और सुरक्षा मिल सके, जो उनके जीवन को स्थायित्व दे।

लुंगलेई जिले में इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। 10 टीमें तैयार की गई हैं, जो सबसे पहले रामथार शरणार्थी शिविर से बायोमेट्रिक रजिस्ट्रेशन की शुरुआत करेंगी। फॉरेनर्स आइडेंटिफिकेशन पोर्टल के माध्यम से डेटा दर्ज किया जाएगा। जहां इंटरनेट कमजोर है, वहां ऑफलाइन मोड में भी काम होगा तकनीक की लचीली और समावेशी उपयोगिता का सुंदर उदाहरण।

32,000 से अधिक म्यांमार शरणार्थी, 2,371 बांग्लादेशी और मणिपुर से आए 7,000 से ज्यादा जो समुदाय के लोग, सभी मिलाकर मिजोरम में आज एक ऐसा मानवीय परिदृश्य रच रहे हैं जो न सिर्फ राजनीतिक शरण की कहानी कहता है, बल्कि जातीय एकता और मानवता की मिसाल बन रहा है।

यह बायोमेट्रिक पहल एक प्रशासनिक प्रक्रिया से कहीं अधिक है यह पहचान का माध्यम है, पराया कहे जाने वालों को अपने जैसा मानने की प्रक्रिया है। यह मिजोरम की ओर से अपने सांस्कृतिक भाइयों को दिया गया एक सशक्त संदेश है:

“तुम सिर्फ हमारे बीच नहीं हो, तुम हमारे हो।”

इस प्रयास में तकनीक और परंपरा, आधुनिकता और मानवता, दोनों एक साथ चल रहे हैं शायद यही मिजोरम की सबसे बड़ी ताकत है।

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