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Jitiya Vrat 2025: मातृत्व की शक्ति और संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला कठिन व्रत, जानें तारीख, विधि और महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत यानी जितिया व्रत एक ऐसा पर्व है, जो माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत 2025 में 14 सितंबर को रखा जाएगा और यह तीन दिन तक विशेष विधि-विधान से मनाया जाएगा। आईये जानते हैं पूजा की तारीक और पूरी विधि।
Post Published By: Nidhi Kushwaha
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Jitiya Vrat 2025: मातृत्व की शक्ति और संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला कठिन व्रत, जानें तारीख, विधि और महत्व

New Delhi: हिंदू धर्म में जितिया व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सुख, शांति और समृद्धि के लिए रखती हैं। छठ महापर्व के बाद यह सबसे कठिन उपवासों में गिना जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

2025 में जितिया व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा। यह व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। यह परंपरा खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में गहराई से जुड़ी हुई है।

व्रत की तिथियां और समय

नहाय खाय: 13 सितंबर 2025
व्रत/उपवास: 14 सितंबर 2025
पारण (व्रत समापन): 15 सितंबर 2025 सुबह 6:10 बजे से 8:32 बजे तक
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर 2025, सुबह 5:04 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 15 सितंबर 2025, सुबह 3:06 बजे

जितिया पूजा विधि

जितिया व्रत के दिन व्रती महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करती हैं और पवित्रता के साथ व्रत की शुरुआत करती हैं। पूजा के लिए बांस के पत्ते पर मिट्टी से बने चील और सियार की आकृतियों की पूजा की जाती है। संध्या के समय कुशा से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर विधिवत पूजन किया जाता है। इसके बाद जितिया व्रत की पौराणिक कथा का पाठ कर भगवान को प्रसाद अर्पित किया जाता है। अगले दिन प्रातः स्नान व पूजा के पश्चात व्रत का पारण कर व्रत संपन्न किया जाता है।

व्रत की विधि और परंपरा

इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन और रात निर्जला उपवास रखती हैं। इस दौरान वे जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करतीं। व्रत की पूर्व संध्या को महिलाएं मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाती हैं।

इस कथा को सुनना होता है शुभ

व्रत के दिन जीमूतवाहन, चील और सियारिन की कथा सुनी जाती है। पूजा में सरसों का तेल, खल और सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व होता है। व्रत समाप्ति के बाद पूजन में प्रयुक्त सरसों का तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप लगाया जाता है।

व्रत से जुड़ी पौराणिक मान्यता

किंवदंती के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को अश्वत्थामा ने मार डाला था। श्रीकृष्ण ने उसे पुनः जीवनदान दिया और उसका नाम जीवित्पुत्र रखा। तभी से इस व्रत की परंपरा आरंभ हुई, जिसे आज तक श्रद्धापूर्वक निभाया जाता है।

डिस्क्लेमर: डाइनामाइट न्यूज़ इस लेख में दी गई जानकारी की पुष्टि नहीं करता। यह लेख धर्म, संस्कृति और जनमान्यताओं पर आधारित है। किसी धार्मिक विधि को अपनाने से पहले अपने कुल परंपरा या पंडित से परामर्श अवश्य लें।

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