New Delhi: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे देवोत्थान या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी दोबारा संभालते हैं। इसी के साथ चातुर्मास का समापन होता है और शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृहप्रवेश और मुंडन आदि की शुरुआत होती है।
देवउठनी एकादशी की तिथि और समय
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल देवउठनी एकादशी की तिथि 1 नवंबर 2025 को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 2 नवंबर सुबह 7 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि सूर्योदय के समय रहेगी, इसलिए व्रत 1 नवंबर को ही रखा जाएगा।
व्रत का पारण 2 नवंबर को किया जाएगा, जिसका शुभ समय दोपहर 1:11 से 3:23 बजे तक रहेगा।
पूजन मुहूर्त
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए तीन विशेष मुहूर्त बताए गए हैं:
- अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:42 से दोपहर 12:27 तक
- गोधूली मुहूर्त: शाम 5:36 से 6:02 तक
- प्रदोष काल: शाम 5:36 बजे से आरंभ
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इन मुहूर्तों में श्रीहरि विष्णु का पूजन अत्यंत शुभ माना गया है।
पूजा विधि
देवउठनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद घर को स्वच्छ करें। दरवाजे पर गेरू और चूने से अल्पना बनाएं तथा गन्ने का मंडप सजाकर भगवान विष्णु और मां तुलसी की स्थापना करें।
पूजा में गुड़, रुई, रोली, अक्षत, चावल और पुष्प का उपयोग करें। दीप जलाकर ‘उठो देव बैठो देव, आपके उठने से सभी शुभ कार्य हों’ का उच्चारण करते हुए भगवान विष्णु को जागृत करें। माना जाता है कि इससे जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और घर में सुख-शांति आती है।
इन गलतियों से बचें
देवउठनी एकादशी पर कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है:
- इस दिन तामसिक भोजन और मदिरा का सेवन न करें।
- भगवान विष्णु को रथ पर विराजमान करने के बाद ही पूजा करें।
- तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचें, क्योंकि इसी दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह होता है।
- देर तक न सोएं, बल्कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर विष्णु भगवान के नाम का जाप करें।

