New Delhi: सामान्यतः चंद्र या सूर्य ग्रहण के समय मंदिरों के कपाट सूतक काल शुरू होते ही बंद कर दिए जाते हैं। भक्तों को दर्शन की अनुमति ग्रहण समाप्त होने के बाद ही मिलती है। लेकिन देश के कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहाँ ग्रहण के दौरान भी पूजा और दर्शन की परंपरा जारी रहती है। यहाँ सूतक काल को अलग तरह से देखा जाता है और मान्यता है कि भगवान पर इसका कोई असर नहीं होता।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर ग्रहण के समय भी खुला रहता है। भक्त ग्रहण के दौरान भी पूजा, आरती और दर्शन कर सकते हैं। केवल पूजा के समय में परिवर्तन किया जाता है, जिसकी सूचना पहले ही दे दी जाती है। मान्यता है कि महाकाल तीनों लोकों के स्वामी हैं और उन पर सूतक का प्रभाव नहीं होता।
बीकानेर का लक्ष्मीनाथ मंदिर
राजस्थान के बीकानेर में स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर भी ग्रहण के समय बंद नहीं होता। कहा जाता है कि एक बार ग्रहण के दौरान मंदिर के पुजारी ने पूजा नहीं की थी, जिसके बाद भगवान ने हलवाई के सपने में आकर अपनी भूख बताई थी। तब से मंदिर में ग्रहण के दौरान भी पूजा और दर्शन चलते हैं।
केरल का थिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर
केरल के कोट्टायम जिले में स्थित थिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर में भी ग्रहण के दौरान कपाट बंद नहीं किए जाते। मान्यता है कि भगवान कृष्ण की चार हाथों वाली मूर्ति भूख से दुबली हो जाती है। यहाँ भगवान को दिन में दस बार भोग लगाया जाता है और ग्रहण के समय कपाट बंद होने से भगवान की कमरपेटी ढीली होकर गिर गई थी।
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गयाजी का विष्णुपाद मंदिर
गयाजी का विष्णुपाद मंदिर पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। ग्रहण के समय मंदिर खुला रहता है और इस दौरान पिंडदान को बेहद शुभ माना जाता है। ग्रहण में किए गए धार्मिक कार्यों से आत्मा की शांति और पुण्य मिलता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर
वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में चंद्र या सूर्य ग्रहण के करीब 2.5 घंटे पहले कपाट बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन पूरे सूतक काल के लिए मंदिर बंद नहीं होता। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ सुर-असुर समेत सभी लोकों के स्वामी हैं, इसलिए उन पर सूतक का प्रभाव नहीं पड़ता। यहाँ संध्या, शृंगार और शयन आरती के समय निर्धारित हैं, लेकिन ग्रहण समाप्ति तक दर्शन होते रहते हैं।
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