जानिये क्यों कांवड़ को कंधे पर रखा जाता है? क्या है इसके पीछे की वजह

By- Nidhi Kushwaha

Source- Google

Date-18/07/2025

कांवड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों द्वारा श्रावण मास में की जाने वाली तीर्थयात्रा है।

कांवड़ एक बांस का बना होता है, जिसके दोनों सिरों पर जल से भरे घड़े लटकाते हैं। इसे कंधे पर रखकर शिव मंदिर तक ले जाया जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया। 

देवताओं और ऋषियों ने गंगा जल से उनकी तपन शांत की, जिससे कांवड़ यात्रा शुरु हुई। कांवड़ को कंधे पर रखना भक्ति, तपस्या और संतुलन का प्रतीक है। 

 गंगा जल को पवित्र माना जाता है और इसे कांवड़ में लाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से पापों का नाश और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

 कांवड़ को कंधे पर रखकर लंबी यात्रा करना भगवान शिव के प्रति भक्त की श्रद्धा और कठिन तपस्या का प्रतीक है।

कांवड़ यात्रा के दौरान भक्त कठोर नियमों का पालन करते हैं, जैसे पैदल चलना, शुद्धता बनाए रखना और कांवड़ को जमीन पर न रखना।

कांवड़ यात्रा में लाखों भक्त एक साथ भाग लेते हैं, जो सामाजिक एकता और भक्ति के उत्साह को बढ़ावा देता है।

हरिद्वार, गंगोत्री, सुल्तानगंज और अन्य पवित्र स्थानों से गंगा जल लेकर भक्त नीलकंठ, काशी विश्वनाथ जैसे मंदिरों में चढ़ाते हैं।

कांवड़ यात्रा करने से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मिक शुद्धि और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।