By Saumya Singh
03 July 2025
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मुगलों ने फसल, धर्म, व्यापार और सुरक्षा से जुड़े कई तरह के टैक्स लागू किए थे, जिनके जरिए सरकार का खर्च और सेना की जरूरतें पूरी की जाती थीं।
आइए जानें मुगल काल में कौन-कौन से टैक्स लगाए जाते थे और उनका उद्देश्य क्या था।
मुगल टैक्स सिस्टम का सबसे बड़ा स्रोत था खराज, जो खेती की जमीन पर लगाया जाता था। आमतौर पर फसल का 1/3 हिस्सा खराज के रूप में लिया जाता था। इसे ‘जिहत’ भी कहा जाता था।
जकात एक धार्मिक कर था, जो मुस्लिम प्रजा से वसूला जाता था। इसकी दर लगभग 2.5% होती थी और यह अमीर मुसलमानों पर लागू होता था।
जजिया टैक्स गैर-मुस्लिम नागरिकों पर लगाया जाता था। इसका मकसद था उन्हें इस्लामिक राज्य में सुरक्षा देना और बदले में टैक्स लेना। अकबर ने इसे हटा दिया था लेकिन औरंगज़ेब ने इसे दोबारा लागू कर दिया।
नजराना टैक्स नहीं था, लेकिन राजा या दरबारी अधिकारियों को भेंट के रूप में दिया जाता था। यह विशेष अवसरों पर या शाही दरबार में हाजिरी देने पर पेश किया जाता था।
कटरापार्चा टैक्स व्यापारियों और कारीगरों पर विशेष रूप से कीमती सामान, जैसे रेशम व बारीक कपड़ों पर लगाया जाता था। यह बाजार शुल्क से अलग होता था।
ज़ब्त अकबर द्वारा शुरू की गई एक राजस्व प्रणाली थी जिसमें जमीन की पैदावार का नियमित आंकलन होता था और उसके हिसाब से कर वसूला जाता था।
चौथ एक प्रकार का सुरक्षा कर था, जिसे खासकर व्यापारियों और जमींदारों से वसूला जाता था। बदले में राज्य उनकी सुरक्षा का जिम्मा लेता था।
राहदारी एक टोल टैक्स था, जो व्यापारियों व यात्रियों से वसूला जाता था जब वे सामान लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। विदेशी सामानों पर 2.5% से 10% तक की इम्पोर्ट ड्यूटी भी वसूली जाती थी।