New Delhi: कालभैरव को भगवान शिव का तीसरा रुद्र अवतार माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान कालभैरव का प्राकट्य हुआ था। इस दिन भगवान शिव ने अहंकारी अंधकासुर के संहार के लिए अपने ही रक्त से भैरव रूप धारण किया था। यही कारण है कि कालभैरव को “भय का अंत करने वाला” देवता कहा जाता है।
भैरव अष्टमी 2025 का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस वर्ष भैरव अष्टमी का पर्व 12 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि 11 नवंबर की रात 11:08 बजे शुरू होकर 12 नवंबर की रात 10:58 बजे समाप्त होगी। भैरव की पूजा निशा काल यानी रात्रि में करना शुभ माना गया है।
कालभैरव अष्टमी की पूजा विधि
इस दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शाम को भगवान भैरव के मंदिर में जाकर चौमुखा दीपक जलाएं और फूल, उड़द, नारियल, पान, जलेबी, इमरती आदि अर्पित करें। 108 बार “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जाप करें और पूजा के बाद भैरव को जलेबी या इमरती का भोग लगाएं। इस दिन जरूरतमंदों को ऊनी वस्त्र या दो रंग का कंबल दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। परंपरा के अनुसार कुत्तों को जलेबी खिलाना भी भैरव उपासना का एक पवित्र भाग है।
भैरव उपासना से मिलने वाले लाभ
कालभैरव की आराधना से भय, मृत्यु और संकट का नाश होता है। कहा गया है कि जो व्यक्ति भैरव अष्टमी पर विधि-विधान से व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। नारद पुराण के अनुसार, कालभैरव की कृपा से ग्रह बाधा, शत्रु भय और मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है।
दान और रात्रि पूजा का महत्व
अगहन महीने में ऊनी वस्त्र, भोजन या धन का दान करना अत्यंत पुण्यकारी है। रात में प्रदोष काल या मध्यरात्रि में भैरव उपासना विशेष फलदायी मानी जाती है। भक्त भगवान शिव, माता पार्वती और भैरव की पूजा करते हैं। कालभैरव के वाहन काले कुत्ते की पूजा से भी शुभ फल प्राप्त होता है।
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जीवन से भय और कष्ट दूर करने वाले मंत्र
ॐ कालभैरवाय नमः
ॐ भयहरणं च भैरव
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः

