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आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव जयंती मनाई जा रही है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप भैरव की पूजा से भय, संकट और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और भैरव जी के स्वरूप।
काल भैरव उपासना का महत्व
New Delhi: आज देशभर में काल भैरव जयंती का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान शिव के उग्र और रक्षक स्वरूप “भैरव” के प्रकट होने का माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भैरव जी की पूजा करने से भय, पाप, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है।
भक्त इस दिन भगवान भैरव की विशेष आराधना करते हैं और उनके आशीर्वाद से नकारात्मकता तथा शत्रुओं पर विजय की कामना करते हैं। इस पर्व को भैरव अष्टमी या कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर 2025 (मंगलवार) रात 11:09 बजे से हुई थी और यह तिथि 12 नवंबर 2025 (बुधवार) रात 10:58 बजे समाप्त होगी।
इन शुभ मुहूर्तों में भगवान भैरव की पूजा करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
काल भैरव जयंती 2025
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मान्यता है कि भगवान भैरव की पूजा करने से न केवल भय और संकट दूर होते हैं, बल्कि व्यक्ति की आत्मशक्ति और मानसिक दृढ़ता भी बढ़ती है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष है जो जीवन से नकारात्मक ऊर्जा और भय को समाप्त करना चाहते हैं।
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