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Chhath Puja 2025: महिलाओं द्वारा नाक से माथे तक लगा ऑरेंज सिंदूर, जानें इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण

छठ पूजा 2025 बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। सूर्य देव और छठी मैया की आराधना, निर्जला व्रत, और विशेष सिंदूर रिवाज परिवार की खुशहाली और पति की लंबी उम्र का प्रतीक हैं।
Post Published By: Sapna Srivastava
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Chhath Puja 2025: महिलाओं द्वारा नाक से माथे तक लगा ऑरेंज सिंदूर, जानें इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण

New Delhi: छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू महापर्व है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया (जो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव की बहन हैं) की आराधना के लिए समर्पित है। इस पूजा का उद्देश्य स्वास्थ्य, समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली सुनिश्चित करना है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा की परंपरा भगवान राम और माता सीता के अयोध्या लौटने के समय से जुड़ी है, जब लोग सूर्य देव को धन्यवाद देने के लिए उपवास और अर्घ्य अर्पित करते थे। इसी परंपरा को व्यवस्थित रूप देकर चार दिवसीय छठ महापर्व का स्वरूप बनाया गया।

छठ पूजा का चार दिवसीय कार्यक्रम (2025)

पहला दिन – नहाय-खाय: श्रद्धालु पवित्र स्नान कर एक शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
दूसरा दिन – खरना: सूर्य उदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखा जाता है, इसके बाद मीठा प्रसाद अर्पित कर व्रत तोड़ा जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या जलाशय किनारे मुख्य पूजा आयोजित होती है। व्रती कठोर निर्जला व्रत रखते हैं।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य: सूर्योदय के समय व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उपवास का पारणा करते हैं।

विशेष सिंदूर रिवाज

छठ पूजा के दौरान विवाहित महिलाएं नाक से माथे तक लंबी सिंदूर रेखा लगाती हैं। यह रेखा सूर्य की लाल चमक और जीवन शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। परंपरा के अनुसार, सिंदूर की लंबाई पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली का प्रतीक होती है।

क्यों नारंगी सिंदूर?

छठ पूजा में नारंगी-सिंदूर का उपयोग सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। नारंगी रंग भगवान हनुमान के ब्रह्मचारी रूप से जुड़ा है और सूर्य देव की तेजस्विता का प्रतीक है। यह विवाहित जीवन की शुरुआत और सूर्य देव को अर्पित भक्ति दोनों का संकेत देता है।

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सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

छठ पूजा केवल व्यक्तिगत उपासना नहीं है, बल्कि यह परिवार की एकता, वैवाहिक समरसता और सामुदायिक शुद्धता को बढ़ावा देती है। व्रत, अर्घ्य और जल में खड़े होकर पूजा करना भक्तों की कृतज्ञता, आत्म-अनुशासन और प्रकृति से जुड़ाव दर्शाता है।

इस महापर्व के दौरान महिलाओं द्वारा लगाई गई नारंगी सिंदूर रेखा, व्रत और अर्घ्य की विधि न केवल धार्मिक विश्वासों का प्रतीक है बल्कि यह पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की भी अभिव्यक्ति करती है।

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छठ पूजा 2025 में, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और देश-विदेश के प्रवासी समुदाय इस प्राचीन पर्व को श्रद्धा और भक्ति के साथ मना रहे हैं। यह महापर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का, बल्कि पारिवारिक प्रेम, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है।

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