जानिए तीन तलाक से जुड़े इद्दत, खुला और हलाला के बारे में..

डीएन ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने आज तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब हर तरफ हलाला, इद्दत और खुला की चर्चा जोरों पर है। डाइनामाइट न्यूज की इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे है तीन तलाक से जुड़े तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर..

श्रोत: इंटरनेट
श्रोत: इंटरनेट


नई दिल्ली: भारत में ट्रिपल तलाक को लेकर लंबे समय से चली आ रही बहस आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद काफी हद तक कम हो गयी है। ट्रिपल तलाक भारत में प्रचलित तलाक का एक रूप है, जिससे एक मुस्लिम व्यक्ति तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। यह मौखिक या लिखित हो सकता है। हाल के दिनों में टेलीफोन, एसएमएस, ईमेल या सोशल मीडिया जैसे संचार के आधुनिक माध्यमों से भी तलाक दिया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय में तलाक की एक निश्चित प्रक्रिया है, जिससे कई महत्पूर्ण पहलु है।  

कुरान में क्या है तीन तलाक के मायने

दरअसल, दीने इब्राहीम की रिवायात के मुताबिक अरब जाहिलियत(अनपढ़ या नासमझ) के दौर में भी आवाम तलाक़ से वाकिफ थी, उनका इतिहास बताता है कि तलाक़ का कानून उनके यहां भी लगभग वही था, जो अब इस्लाम में है, लेकिन कुछ बिदअतें उन्होंने इसमें भी दाखिल कर दी थीं।

इस्लाम के मुताबिक किसी जोड़े में तलाक की नौबत आने से पहले हर किसी की यह कोशिश होनी चाहिए कि जो रिश्ते की डोर एक बार बंध गई है, उसे मुमकिन हद तक टूटने से बचाया जाए।

दोनों पक्ष मिल कर कराएं सुलह

जब किसी पति-पत्नी का झगड़ा बढ़ता दिखाई दे तो अल्लाह ने कुरान में उनके करीबी रिश्तेदारों और उनका भला चाहने वालों को यह हिदायतें दी है कि वो आगे बढ़ें और मामले को सुधारने की कोशिश करें। इसका तरीका कुरान ने यह बतलाया है कि  “एक फैसला करने वाला शौहर के खानदान में से मुकर्रर (नियुक्त) करें और एक फैसला करने वाला बीवी के खानदान में से चुने और वो दोनों पक्ष मिल कर उनमें सुलह कराने की कोशिश करें। इससे उम्मीद है कि जिस झगड़े को पति-पत्नी नहीं सुलझा सके, वो खानदान के बुज़ुर्ग और दूसरे हमदर्द लोगों के बीच में आने से सुलझ जाए।

एक बार में एक तलाक देना जायज़

इसके बावजूद भी अगर शौहर और बीवी दोनों या दोनों में से किसी एक ने तलाक का फैसला कर ही लिया है, तो शौहर बीवी के खास दिनों (Menstruation) के आने का इंतजार करे, और खास दिनों के गुज़र जाने के बाद जब बीवी पाक़ हो जाए तो बिना हम बिस्तर हुए कम से कम दो जिम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक दे,  यानी शौहर हर बीवी से सिर्फ इतना कहे कि ”मैं तुम्हे तलाक देता हूं”। तलाक हर हाल में एक ही दी जाएगी, दो या तीन या सौ नहीं। जो लोग जिहालत की हदें पार करते हुए दो-तीन या हज़ार तलाक बोल देते हैं, यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ अमल है और बहुत बड़ा गुनाह है।

इद्दत: तलाक के बाद लड़की मायके वापस आती है, इद्दत के 3 महीने किसी पराए आदमी के बिना सामने आए पूरा करती है ताकि लड़की अगर प्रेगनेंट हो तो ये बात सबके सामने आ जाए। जिससे उस औरत के चरित्र पर कोई उंगली न उठा सके और इस बच्चे को नाजायज न कहा जा सके।

हलाला: अपनी मर्ज़ी से अगर वो तलाकशुदा औरत किसी दूसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे दे या मर जाए तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है, इसी को कानून में ”हलाला” कहते हैं। लेकिन याद रहे यह इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है,  जान बूझकर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इसलिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है।

खुला: अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगना होगा अगर शौहर नेक इंसान होगा तो ज़ाहिर है वो बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा, लेकिन अगर शौहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे। दरअसल, इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे ”खुला” कहा जाता है।










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